Tuesday 16 August 2011

पलके बिछाएं हूँ अब तक !

उनके चाहत के सपने सजाएँ हूँ अब तक ।
उनके यादों को सीने में बसाये हूँ अब तक ।

वो मासूम चेहरा, वो झील सी गहरी आँखें ;
वो उनका मुस्काना ,वो उनका शर्माना,
भोली सूरत को आँखों में छुपाये हूँ अब तक !

छुप-छुप के हमसे निगाहें मिलाना 
फिर  हथेली से अपना सहारा छुपाना ;
कुछ भी तो नहीं भुला पाए हूँ अब तक !

वो जागी जागी रातें , वो तेरी सारी बातें ;
वो जुदाई के दिन , और वो मुलाकातें ;
उन्ही यादों में कहाँ सो पाए हूँ अब तक !

प्यासी-प्यासी सी मेरी भीगी  निगाहें ;
तकती रहती है तेरी वो सुनी राहें ; 
तेरी राहों में पलके बिछाएं हूँ अब तक !

ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...