Monday 31 December 2012

तब आकर देना मुझे नए साल की मुबारकबाद !

 
नया साल आया,
 लोगो ने मनाई खुसियाँ ।।
मगर,
क्या भूला पायेगे हम ,
पिछले वर्ष की त्रासदियाँ ।। 

लोग चाहे जैसे भी दे ले मुबारकबाद । 
मगर मुझको आ ही जाएगी इनकी याद । 

सच कहना मेरे दोस्त , 
कलेन्डर के अलावा और क्या बदला है । 

वही एक ओर गरीबी है , बेबसी है , 
भूख और प्यास है । 
दुसरी ओर 
सुख है, समृद्धी है ,
ऐश्वर्य और विलास है । 

इसी लिए तो मैं कहता हूँ मेरे दोस्त ,

जब भूखा न हो कोई बचपन , 
ममता बेबस न हो ,
ईन्सानी भेडियों से महफुज हो 
हर बहना की लाज ।। 
तब आकर देना मुझे ,
नए साल की मुबारकबाद ।।

- मथुरा प्रसाद वर्मा ''प्रसाद''

Wednesday 22 August 2012

अपने हालत पे यूँ लाचार हो गए हैं.


अपने  हालात  पे  यूँ लाचार  हो गए  हैं.
आम  थे  कभी, अब आचार हो गए  हैं.

अपनी आजादी पे किसकी नज़र लगी 
उम्र भर के लिए गिरफतार हो गए हैं . 


भूख लगी हमने तो  रोटी क्या मांग ली,

उनकी निगाहों में गुनहगार हो गए हैं .

वो  देने  आया था दर्देदिल का दवा हमें
सुना है इन दिनों बीमार हो गया  हैं.

सुना है कुछ बेईमान लोगों ने कैसे ,
कुछ जोड़ तोड़ की है ओर सरकार हो गए है 


दुवा  मांगी थी कभी खुशियों की मैंने 
उसी दिन से मेरे हाथ बेकार हो गए है 

हे भगवन इन्हें बुद्धि दे !

हे भगवन इन्हें बुद्धि दे
 ये आदमी आपस में लड़ते है 

आदमी हो कर आदमी का खून चूसते है 

आदमी हो कर आदमी को लुटते है

ये क्यों अलग अलग नाम से  टूटते है ! 
एक एक साँस   के लिए 
घुटते है ! 
हे भगवन इन्हें बुद्धि दे !


छोटा आदमी हूँ


ये मेरे बाबूजी है ; मेरी ये कविता उनके संघर्ष , 
सरलता  और  साहस   भरे  जीवन  को  समर्पित है  !


























मैं
 कहाँ  किसी से झूठे वादे करता हूँ !
छोटा आदमी हूँ छोटी बातें करता हूँ !

पसीने में तन को  पिघलाना जनता  हूँ, 
मैं अपने दिन को यूँ ही  राते करता हूँ !

आने वाले कल की मूरत गढ़ना चाहता हूँ
मैं तकदीर पर हथोड़े से घातें करता हूँ !

कौन रखता हैं खंजर बगल में क्या जानूं
मैं तो हंस के सबसे मुलाकाते करता हूँ

मैं चाँद को अपना पेट दिखा दिखा कर,
रोटियों में चाँद तारों के नज़ारे करता हूँ!

खुद ही खोया रहता हूँ लहरों में कहीं लेकिन , 
मैं कस्तियाँ सबके किनारे करता हूँ! 

आम आदमी

वो रोयेगा, चीखेगा और कभी चिल्लाएगा !!
तड़प - तड़प के किसी दिन मर जायेगा !!

वो आम आदमी है  सुनेगा उसकी कौन ?
कौन उसकी बात पे अपना सर खापयेगा !!

बच ही जायेंगे गुनहगार जैसे तैसे ;
वो अपनी बेगुनाही की सजा पायेगा !!

सब फिरते है यहाँ कालिख लेकर मेरे दोस्त ;
तू अपने दमन को कहाँ कहाँ बचाएगा !!

मेरे महबूब को तुम देख का पहचानना;
मेरे ज़ख्म  देखकर वो मुस्कुराएगा !!

वो रोटी मांगता हुआ भूख से मर भी गया ;
देखना गुन्हगारों में उसका नाम  भी  आएगा !!









मत अकड़, झुक !



सरफरोशों की प्रजातियाँ विलुप्त हुईं ,
आंधियां तेज़ है मत अकड़, झुक !!

सर सलामत रहा तो फिर देखा जायेगा ;
सर उठाने  का वक्त  अभी आएगा रुक !!

महफ़िल  में मची है अभी कौओ की काँव-काँव;
कौन सुनेगा यहाँ कोयल की कुक !!

इसलिए की अखबारों की सुर्खियों में नाम हो ;
गिरेबान मत झांक , आसमान में थूक !!

शेर की दहाड़ अब पिंजरों में कैद है ;
कुत्ते की तरह  , भूक सके तो भूक !!

रोटियां जिनके लिए फकत खेलने  की चीज़ है;
वो क्या जाने किसी बच्चे  का  भूख  !!

आज कल मुह खोलन भी तो एक जुर्म हो गई है
झूठ न कह सको तो रहो सदा मूक !!

लो सबक अब भी उनकी मक्कारियों से ' प्रसाद'
जिनकी तिजोरी  में बंद है ज़माने का सुख !!

Friday 22 June 2012

शेरोशायरी

   इतने हैं मिले जख्म के दिल तार तार है।
  उसपे ये सितम, कहते है कहो न प्यार है।
  कटेंगे   कैसे तू बता जिंदगी के चार दिन ,
  न कोई आरजू है न किसी का  इंतजार है।

हर एक हार किसी जीत की शुरुवात होती है।
हर सुबह से पहली एक लम्बी रात होती है ।
जो हिम्मत हारते नहीं है गिर गिर के राहो में
मुकद्दर में उनहीं जीत की सौगात होती है । 




करती है सरकार भैया।

करती है सरकार भईया !!
आज कल व्यापार भईया !!


इन्हें तो बस वोट चाहिए
देश  का  बँटाधार भईया !! 


गुंडे, मवाली,छुटभइयों से 
संसद है लाचार भईया !!


किसे  पड़ी है सच बोलेगा 
कौन सहेगा मार  भईया !!

Thursday 23 February 2012

इशारे से कभी बुलाये तो कोई !!

छुप के देखे, मुस्कुरा के नज़रें झुकाए तो कोई !!
शोख नज़रों के इशारे से कभी बुलाये तो कोई !!


टूट जाये टूटने का गम भी न होगा ;
एक हसीं ख्वाब मुझको  दिखाए तो कोई !!


उदास बैठूं, रोया करूँ ,छुप-छुप के तनहाई में ;
मैं  रूठ  जाऊं तो आके  मनाये तो कोई !!


मेरी आँखों में देखे आने वाले कल  को ;
मेरे एहसास की गहराई में डूब जाये तो कोई !!


कोई आये न आये, किसी  के आने की उम्मीद तो  हो     '
कभी झूठा  वादा कर के दिल को बहलाए  तो कोई !!


मैं किस्से कहू "प्रसाद" ,बात दिल की अपनी ;
मेरी हालत सुने और मजाक उडाए तो कोई !!







Saturday 14 January 2012


मुझको उम्मीदों का उजाला देती जा !

मुझको उम्मीदों का उजाला  देती जा ।
कोई तो निशानी प्यार वाला  देती जा ।


मै उम्रभर तेरा इंतजार कर सकता  हूँ ;
तू लौट आने का हवाला देती जा ।


किसी मयकस को प्यासा  लौटते नहीं ;
आ गया हूँ तेरे दर पे , इक प्याला देती जा ।

फिर न पिऊंगा किसी मयखाने में कभी
तू आज अपनी नैनो की मधुशाला देती जा ।

वो तेरी हर भूख मिटा देगा देखना ;
तू भूखे बच्चे को निवाला देती जा !






जीत की सौगात

अन्नाजी को सलाम !
हर एक हार जीत की शुरुवात होती है !
हार सुबह से पहले एक लम्बी रात  होती है !
जो हार कर भी हिम्मत कभी हराते नहीं ;
उन्ही के मुकद्दर में जीत की सौगात होती है !

Friday 13 January 2012

माँ छोटी सी बन्दुक दे-दे

माँ छोटी सी बन्दुक दे-दे ,
मैं सेना में जाऊंगा !
डटा रहूगा सरहद पर,
भारत की  लाज  बचाउंगा  !


आज देश की माटी का ,
जन  जन को यही पुकार है  !
जो  देश  के काम न आये ,
 उस जीवन को धिक्कार है!!


मैं अपने लहू का कतरा-कतरा ,
देश हित में बहाऊंगा !
कर दूंगा सीना छलनी-छलनी ,
दुश्मन को धुल चटाउंगा !!


रणभूमि में पीठ दिखाऊं,
माँ ऐसा तेरा लाल नहीं !
इस देश का सच्चा सैनिक हूँ मैं ,
कोई भोला बाल नहीं !

लडूंगा आंखरी साँस तक,
दुश्मन को मजे चखाऊंगा !
रक्षा करता देश का मैं ,
सीने में गोली खाऊंगा !!

माँ तू आँशु मत बहाना ,
जब मैं मारा जाऊंगा !
मातृभूमि की रक्षा करने
फिर तेरी कोख से आउँगा


Monday 9 January 2012

पहली बार !


एक दस्तक सा हुआ मन में ,
पहली बार!
खिला पुष्प , सुने आँगन में /
पहली बार /

हवाए महक उठी /
प्रीत की खुसबू से /
प्यारा सा लगा सावन /
पहली बार !

यौवन ने ली अंगड़ाई /
हलचल सी मच गई /
हृदय में
कोई मार गया कंकड़ /
ठहरे हुए पानी में /
पहली बार !

एक धुंधली  सी तस्वीर /
उभरने लगी बार बार /
स्मृति पटल पर /
बहुत कुछ खो कर हुआ /
कुछ पा लेने का एहसास /
पहली  बार !

इसी के कमाई से तो ये सरकार चल रही है !

नशा, नश-नश में समाई आज के समाज के ! 
नशे  के गुलाम हो रहे सारे नवजवान आज  के !
पीढ़ी - दर-पीढ़ी इसका प्रचार चल रही  है ! 
इसी के कमाई से तो ये सरकार चल रही  है !

हर जोर जुलम के टक्कर मैं; संघर्ष हमारा नारा है!

अंधियारों ने बहुत सताया नया सबेरा लाना है!!
 गावं -गावं और घर-घर जाकर दीप नए जलना है !!
जब-जब अत्याचार बढे है ;हमने यही पुकारा है !
 हर जोर जुलम के टक्कर मैं; संघर्ष हमारा नारा है!


 हम भारत  नन्हे सिपाही ;माँ की लाज बचायेंगे बचायेंगे !
 जिस दुश्मन ने आँख उठाई हम उनसे टकरायेंगे !


 आन हमें भारत माता का प्राणों से भी  प्यारा है !!
 हर जोर जुल्म के 


न मंदिर न मस्जिद न गिरिजा  घर गुरुद्वार हो !
 ये चाहत है मानवता की ; आपस में भाई चारा हो !


 मिटायें आओ हर शोषण  को ; यह संकल्प हमारा है !!
 हर जोर जुल्म के 


शांति त्याग और खुशहाली का प्रीतिक प्यारा तिरंगा  है !
आन हमारा शान हमारा जान हमारा तिरंगा है !


झुकाना इसका मंजूर नहीं ;मर जाना हमें गवारा है !!
 हर जोर जुल्म के 

आत्मीय मित्र बन

हाड ,मांस, रक्त है , न  रंच   इसका आश कर  !
नाशवान  देह   है ;मोह  मुक्त  पाश  कर !!


अमर सदा है आत्मा ; नेह  जन्म  - जन्म का  !
रूप  रंग  भूल  कर  आत्मा में  वास  कर ।


प्रेम  का है मूल्य  क्या  , जो  छान भर टिके नहीं ।
तृष्णा अतृप्त  है ; भोग  और  विलाश   कर ।


वासना  है पुजती  ; देह सौंदर्य को,
याचना तो  स्यार्थ  है ; त्याग   में  विश्वास  कर।


व्यर्थ  का प्रपंच  रच  कोयला  काया  किया
बन  कुंदन  , कर साधना  , सकल  तृष्णा नाश कर ।


पा परम  स्नेह  मन  का, बन आत्मीय  मित्र  बन ;
काम मृग मार  दे  ; अंत  सब  प्यास  कर ।



Saturday 7 January 2012

भूख

भूख बढती गई , वो खाते  चले गए ।
उनके  पेट  में सब समाते चले गये ।
भूख उनका फिर भी न मिट सका ,
आदमी , आदमी को चबाते चले गए।

न अपनों की परवाह, न बेगानों की ।
भूख ऐसी होती है  बेइमानो की ।
ऐसे हैवान  भी छुपे है बीच हमारे  ,
पीते है खून जिन्दा इंसानों की ।

इसी भूख ने सरकार बना दिया ;
हर आदमी को गुनहगार बना दिया !
चलती रही विदेशी बैसाखी के सहारे 
देश को इतना  लाचार  बना दिया ।

कभी सड़क ,कभी जंगल,कभी पुल खा गए ।
कभी सीमेंट ,कभी रेट, कभी धुल खा गए ।
जय हो नेताओं तुम्हारे पेट की ;
ढकार न ली मगर सारा देश खा गए ।


सचमुच बड़ा बत्तमीज़ है आदमी !

सोचता हूँ मैं ; जाने  क्या  चीज है आदमीं !
ज़िन्दगी रोग है , मरीज है आदमीं !!

खुद को कभी जो पहचान पाया हो ;
ऐसा भी  कोई खुशनशीब है आदमीं !!

बटता गया है खुद को जिसके नाम पर ;
उस खुदा से क्या वाकिफ है आदमी !!

जरा सी डोर टूटी , और सांसे थम गई ;
मौत के कितने करीब है आदमी !

पर आदमी का फिर भी गुरुर न गया
सचमुच बड़ा बत्तमीज़ है आदमी !



छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया !




छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया , 

                               दुनियां ला ये देखना हे ।
आधा पेट खा के रे संगी,

                                 जांगर टोर कमाना हे ।









१, सोना-चाँदी, हिरा-मोती,

                                    इंहां के धुर्रा मटी हे ।
तभो ले सोसित दलित गरीबहा,

                                छत्तीसगढ़ के वासी हे ।
रतिहा पहागे अब तो संगी .

                                नवा बिहनिया लाना हे ।

आधा पेट .....................


२, खेत हमर कागद हे अऊ,

                                कलम हमर बर नांगर हे।

हरियर-हरियर धान हमर,

                             करम के उज्जर आखर हे ।

कौनो रहय अब अनपढ़ झन,

                                  पढ़ना अऊ पढ़ाना हे ।


आधा पेट ..........................



३ , जगे जगे रहिना हे संगी,

                             करना हे देश के रखवारी।

रखवार बन के करते वो मन,

                                    अब घर घर म चोरी ।

बेच दिही लालच में आ के,

                                    इंकर का ठिकाना हे।

घर माँ लुकाये चोर मन ले ,

                         मोर छत्तीसगढ़ ला बचाना हे।



उम्मीद

उम्मीद उन्हें थी चाँद की,हम जमी के धुल निकले . 
हमने चाह जहाँ फुल था वहां कटीले सुल निकले ! 
बेपनाह इन चाहतों ने ; चाहतों का दम है घोटा ! 
आरजू बाद रही रोज है , आदमी हो रहा है छोटा !  

इंसान नही होते।

हिन्दू नहीं होते वो मुसलमां नहीं होते !
जो खून से खेलते है इन्सां नही होते !!

ऐसे उजाले से तो अँधेरा ही है बेहतर
जो घर को जला दे वो समां नहीं होते !!

चला आता है बुडापा बेवक्त उनके पास
कुछ बच्चे मेरे गांव के क्यों जवाँ नहीं होते !!

मजहब के नाम पे जो बताते है इनसानों को
वो  मुल्क के दुश्मन है मेहमां नहीं होते !!

ये अमन नहीं होता ये चमन नहीं होते
गर हौसलों में अपने तुफां नहीं  होते !!




जिगर पीते है.

जुदाई में गम का जहर पीतें है .
रोकती ही दुनिया हम मगर पीतें है .


कौन कहता है मेरे हाथों में शराब है ,
हम तो अपना जिगर पीते है.


कभी कभी सारा सहर लड़खड़ाता है ,
उनके यादों में हम इस कदर पीतें है .


पिए बिना अब हमको होश नहीं आता है 
यारो हम अब साम ओ सहर पीतें है 


तेरा गम  कहा हमको बनती शराबी 
कहा हम  कोई उम्र भर पीते है .


किसे  है प्रसाद चाहत तेरे जीने की ,
हर अंजाम से हो हम बेखबर पीते है .





तेरी गम ए जुदाई पी ली .

तेरी गम ए जुदाई पी ली .
तुने जो पिलाई पी ली.
लोग कहते रहे शराब, 
हमने समझ के बेवफाई पी ली .


कभी ज्यादा पी, कभी  कम  पीया .
कभी ख़ुशी पी  कभी गम पीया   
जब भी तेरी याद आई पी ली 


कभी गैरों ने , कभी आपनों  ने 
कभी हकीकत,कभी सपनों ने 
जब भी हमें सताई पी ली .


क्या बुरा किया जो  पीया  मैंने 
तुझे याद कर जो जिया मैंने 
तुने जीतनी पिलाई पी ली 



ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...