Wednesday 22 August 2012

अपने हालत पे यूँ लाचार हो गए हैं.


अपने  हालात  पे  यूँ लाचार  हो गए  हैं.
आम  थे  कभी, अब आचार हो गए  हैं.

अपनी आजादी पे किसकी नज़र लगी 
उम्र भर के लिए गिरफतार हो गए हैं . 


भूख लगी हमने तो  रोटी क्या मांग ली,

उनकी निगाहों में गुनहगार हो गए हैं .

वो  देने  आया था दर्देदिल का दवा हमें
सुना है इन दिनों बीमार हो गया  हैं.

सुना है कुछ बेईमान लोगों ने कैसे ,
कुछ जोड़ तोड़ की है ओर सरकार हो गए है 


दुवा  मांगी थी कभी खुशियों की मैंने 
उसी दिन से मेरे हाथ बेकार हो गए है 

हे भगवन इन्हें बुद्धि दे !

हे भगवन इन्हें बुद्धि दे
 ये आदमी आपस में लड़ते है 

आदमी हो कर आदमी का खून चूसते है 

आदमी हो कर आदमी को लुटते है

ये क्यों अलग अलग नाम से  टूटते है ! 
एक एक साँस   के लिए 
घुटते है ! 
हे भगवन इन्हें बुद्धि दे !


छोटा आदमी हूँ


ये मेरे बाबूजी है ; मेरी ये कविता उनके संघर्ष , 
सरलता  और  साहस   भरे  जीवन  को  समर्पित है  !


























मैं
 कहाँ  किसी से झूठे वादे करता हूँ !
छोटा आदमी हूँ छोटी बातें करता हूँ !

पसीने में तन को  पिघलाना जनता  हूँ, 
मैं अपने दिन को यूँ ही  राते करता हूँ !

आने वाले कल की मूरत गढ़ना चाहता हूँ
मैं तकदीर पर हथोड़े से घातें करता हूँ !

कौन रखता हैं खंजर बगल में क्या जानूं
मैं तो हंस के सबसे मुलाकाते करता हूँ

मैं चाँद को अपना पेट दिखा दिखा कर,
रोटियों में चाँद तारों के नज़ारे करता हूँ!

खुद ही खोया रहता हूँ लहरों में कहीं लेकिन , 
मैं कस्तियाँ सबके किनारे करता हूँ! 

आम आदमी

वो रोयेगा, चीखेगा और कभी चिल्लाएगा !!
तड़प - तड़प के किसी दिन मर जायेगा !!

वो आम आदमी है  सुनेगा उसकी कौन ?
कौन उसकी बात पे अपना सर खापयेगा !!

बच ही जायेंगे गुनहगार जैसे तैसे ;
वो अपनी बेगुनाही की सजा पायेगा !!

सब फिरते है यहाँ कालिख लेकर मेरे दोस्त ;
तू अपने दमन को कहाँ कहाँ बचाएगा !!

मेरे महबूब को तुम देख का पहचानना;
मेरे ज़ख्म  देखकर वो मुस्कुराएगा !!

वो रोटी मांगता हुआ भूख से मर भी गया ;
देखना गुन्हगारों में उसका नाम  भी  आएगा !!









मत अकड़, झुक !



सरफरोशों की प्रजातियाँ विलुप्त हुईं ,
आंधियां तेज़ है मत अकड़, झुक !!

सर सलामत रहा तो फिर देखा जायेगा ;
सर उठाने  का वक्त  अभी आएगा रुक !!

महफ़िल  में मची है अभी कौओ की काँव-काँव;
कौन सुनेगा यहाँ कोयल की कुक !!

इसलिए की अखबारों की सुर्खियों में नाम हो ;
गिरेबान मत झांक , आसमान में थूक !!

शेर की दहाड़ अब पिंजरों में कैद है ;
कुत्ते की तरह  , भूक सके तो भूक !!

रोटियां जिनके लिए फकत खेलने  की चीज़ है;
वो क्या जाने किसी बच्चे  का  भूख  !!

आज कल मुह खोलन भी तो एक जुर्म हो गई है
झूठ न कह सको तो रहो सदा मूक !!

लो सबक अब भी उनकी मक्कारियों से ' प्रसाद'
जिनकी तिजोरी  में बंद है ज़माने का सुख !!

ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...