Wednesday 22 August 2012

छोटा आदमी हूँ


ये मेरे बाबूजी है ; मेरी ये कविता उनके संघर्ष , 
सरलता  और  साहस   भरे  जीवन  को  समर्पित है  !


























मैं
 कहाँ  किसी से झूठे वादे करता हूँ !
छोटा आदमी हूँ छोटी बातें करता हूँ !

पसीने में तन को  पिघलाना जनता  हूँ, 
मैं अपने दिन को यूँ ही  राते करता हूँ !

आने वाले कल की मूरत गढ़ना चाहता हूँ
मैं तकदीर पर हथोड़े से घातें करता हूँ !

कौन रखता हैं खंजर बगल में क्या जानूं
मैं तो हंस के सबसे मुलाकाते करता हूँ

मैं चाँद को अपना पेट दिखा दिखा कर,
रोटियों में चाँद तारों के नज़ारे करता हूँ!

खुद ही खोया रहता हूँ लहरों में कहीं लेकिन , 
मैं कस्तियाँ सबके किनारे करता हूँ! 

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