वो थोडी सी चिंगारी लगा देता है ।।
फिर धिरे-धिरे उसको हवा देता है।।
मैं गुगवाता हू सुलगता हू धधक उठता हू
वो इस तरह से मुझको जला देता है ।।
सेक लेता है अपने मतलब की रोटी
फिर पानी डाल कर मुझको बुझा देता है ।।
झुठ कोई भी बोले कितनी भी अदा से
वक्त हकिकत से परदा हटा देता है।।
कोई कितना भी चाहे मगर वक्त आने पर
वो अपनी औकात सबको दिखा देता है।।
मैं उसकी निगाहों में चढ. कर भी क्या करू
वो अपनी नि गाहों में ख्ाुद को गिरा देता है।।
प्रसाद मेरी रोटी को रखना सम्हाल कर
भुख हर आदमी को रूला देता है ।।
मथुराप्रसाद वर्मा प्रसाद