Tuesday 29 October 2013

क्या क्या करें ?

क्या क्या करें
क्या क्या न करें ।
हमने उनपे सब छोड़ा है
जो करना है वो खुदा करे ।

बचपन की उखड़ती सांसे है।
ममता की बेबस आँखें है।
वो फिर भी महल बनायेंगे;
कोई मरता है तो मरा करे ।

यहाँ ख़ून से आटा सनती है।
तब जाकर रोटी बनती है।
हर दाने पर पहरे बैठे है;
जिन्हें भूख लगे वो दुवा करे।

जब जुल्म की आंधी चलती है।
इन्साफ कुचल दी जाती है।
यहाँ न्याय गवाही मांगेगी;
अन्याय भले ही हुआ करे।

यहाँ सच हमेसा हरता है।
और झूठ ही बजी मरता है।
"प्रसाद"मगर सच बोलेगा;
कोई सुने या अनसुना करे।।

- मथुरा प्रसाद वर्मा'प्रसाद'

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