नया साल आया, लोगो ने मनाई खुसियाँ ।। मगर, क्या भूला पायेगे हम , पिछले वर्ष की त्रासदियाँ ।। लोग चाहे जैसे भी दे ले मुबारकबाद । मगर मुझको आ ही जाएगी इनकी याद । सच कहना मेरे दोस्त , कलेन्डर के अलावा और क्या बदला है । वही एक ओर गरीबी है , बेबसी है , भूख और प्यास है । दुसरी ओर सुख है, समृद्धी है , ऐश्वर्य और विलास है । इसी लिए तो मैं कहता हूँ मेरे दोस्त , जब भूखा न हो कोई बचपन , ममता बेबस न हो , ईन्सानी भेडियों से महफुज हो हर बहना की लाज ।। तब आकर देना मुझे , नए साल की मुबारकबाद ।। - मथुरा प्रसाद वर्मा ''प्रसाद''
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.