तुझको खयालो में सही कुछ तो मैंने पाया था।
ख्वाब टूटा तो ये जाना कि वो तेरा साया था।
तू चला जा कि अब मैं लौट कर न जाऊंगा,
मैं तेरे साथ बहुत दूर चला आया था।
Saturday 27 May 2017
मुक्तक
Tuesday 21 February 2017
काम आया है
सुबह का भुला शाम आया है।
हो करके बदनाम आया है।
सियासत का रोग लगा था,
करके सारे काम आया है।
आस्तीन में छुरी है पर,
मुँह पर अल्ला राम आया है।
किस किस को लगाया चुना,
बना के झंडुबाम आया है।
खादी तन पर पहन के घुमा,
होकर नँगा हमाम आया है।
वादे बड़े बड़े करता है,
कभी किसी के काम आया है?
अब के किसको चढ़ाएं सूली
पहले मेरा नाम आया है।
प्रसाद' रखता जेब में रोटी,
क़बर में जा काम आया है।
मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'
Tuesday 24 January 2017
देशभक्ति की शायरी
वतन पर जान दे दे जो, जवानी हो तो ऐसे हो।
तिरंगा ओढ़ कर आया है जो शहीद सरहद से
कि हमको नाज है उनपर कहानी हो तो ऐसे हो।
गिरा कर खून मिटटी पर जो ,चमन आबाद करता है।
नमन करने को जो जाते है कट कर शिश भूमि पर,
माँ के उन लाडलो को आज दुनियां याद करता है।
सहादत कर जो माटी चूमते है भाग्यशाली हैं,
वतन का जर्रा जर्रा शदियों तक उनका कर्ज ढोएगा
कि अपनी जान दे कर करते वतन की रखवाली है।
4
विप्लवी गान गा गा कर सोया स्वाभिमान जगाऊँगा।
जगाऊँगा मैं राणा और शिवा के सन्तानो को,
नारायण वीर जागेगा, मैं सोनाखान जगाऊँगा।
सहादत को उन वीरों के , माँ भारती सम्मान देती है।
कि उन पर नाज करती है हिमालय की शिलाएं भी,
चरण को चूम कर जिसके, जवानी जान देती है।
कभी हिम्मत के दौलत से न हमारा हाथ रीता है।
वंशज है भारत के हम ,धरम पर मर मिटने वाले,
खड्ग एक हाथ में थामे तो दूजे हाथ में गीता है।
जो वतन से प्यार करता है, वो इस चाहत पे मरता है।
रहे खुशहाल मेरा देश और देशवासी भी,
अमर मरकर वो हो जाता है जो भारत पे मरता है।
शहीदों ने जिस ख़ातिर हँस कर चुम ली फाँसी।
दिलाई कैसे कहते है हमें चरखे ने आजादी ।
हम कैसे भूलकर उनकोएक अभी खुशियां मनाएंगे,
की जिनके खून के कीमत से हमने पाई आजादी।
हम हथेली पे जान रखते है।
हौसलो में तूफ़ान रखते है।
कह दिया है मेरे देश के सेना ने,
हम भी मुह में जुबान रखते है।
चंद रुपियो के खातिर देशहित से जी चुराते है।
धमकाते है हमारी सेना पर जो तानकर हथियार
हम चीनी माल ले लेकर उनका हौसला बढ़ाते है।
Saturday 21 January 2017
एक सच
सुन कर आश्चर्य होगा
मुझे ज्यादातर कविताएं
तब सूझती है
जब मैं
टॉयलेट सीट पर बैठा होता हूँ।
और वहाँ से उठकर,
कागजपर लिखकर
मैं हल्का बहुत हल्का होता हूँ।
इंसानियत कहाँ खो गया ?
उस दिन बड़ा अजीब हादसा हुआ मेरे साथ।
मैंने कुछ पर्ची में विरुद्धर्थी शब्द लिख कर बच्चो में बाट दिया।
कहा - अपने अपने उलटे अर्थ वाले शब्द जिनको मिले है खोज लो।
कुछ देर तक बच्चे सोर कर के पूरे कक्षा में अपने साथी खोजते रहे।
सच कह रहा हूँ
सारे शब्द मिले
उनके विरुद्धर्थी शब्द मिल गए
एक बच्चा वो पर्ची लेकर अकेले खड़ा था
जिसपर मैंने बड़े बड़े अक्षरों में हैवानियत लिखा था।
इंसानियत कहाँ खो गया आज तक नहीं मिला।
मथुरा प्रसाद वर्मा
Monday 9 January 2017
लाचार हो गया हूँ।
ढाई इंच मुस्कान
सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...
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छत्तीसगढिया शायरी 1 . बहुत अभिमान मैं करथौ, छत्तीसगढ के माटी मा । मोर अंतस जुड़ा जाथे, बटकी भर के बसी मा। ये माटी नो हाय महतारी ये,...
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सूरज निकलता रहा हर दिन हर दिन लाल होता रहा आकाश पक्षी चहकते रहे' हवाएं चलती रही झूमती रही डालियाँ । उठ...