Sunday 28 August 2022

मुक्तक

कोई कितना भी पुकारे, पाँव पर हिलता नहीं।
भीड़ है चारो तरफ पर आदमी मिलता नहीं।
आज कल क्या हो गया है, बागबां को दोस्तों,
खार है हर साख पर बस, गुल कोई खिलता नहीं।

ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...