Saturday 9 June 2018

रूपमाला




तुम किरण थी  मैं अँधेरा, हो सका कब  मेल।
खेल कर  हर बार हारा, प्यार का ये खेल।।
नैन उलझे  और सपने , बुन सके  हम लोग।
आज भी लगता नही ये, था महज संजोग।1।




मैं जला जलता  रहा हूँ,  रात भर अनजान।
आप रोटी सेंक अपना, चल दिये  श्रीमान।।
मैं सहूँगा हर सितम को , मुस्कुराकर यार।
आप ने मेरी मुहब्बत, दी बना बाजार।2।

Thursday 1 March 2018

कोई हादसा हो गया होगा ।


कोई हादसा हो गया होगा ।
वो चलते-चलते सो गया होगा ।

बदहवास गलियों में फिरता है,
कोई अपना खो गया होगा ।

मेरे दुशमनों को फुरशत कहाँ है,
कोई दोस्त ही कांटे बो गया होगा ।

वो आज-कल मुंह छिपाता फिरता है।
रूबरू आईने से हो गया होगा ।

प्रसाद' मेरा कफन अब भी गिला है,
कोई छुप-छुप के रो गया गया होगा !

ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...