Sunday 11 June 2023

ढाई इंच मुस्कान


सुरज बनना मुश्किल है पर ,
दीपक बन कर जल सकते हो।
प्रकाश पर अधिकार न हो,
कुछ देर तो तम को हर सकते हो ।

तोड़ निराश की बेड़ियाँ,
आशाओं से मंजिल गढ़ लो।
बटोही चाहे शूल हो पथ में,
चाहे आग्नि पथ हो बढ़ लो।

 नहीं है सम्भव मानव हो कर,
नीलकंठ होना विष पी कर।
सम्भव पर इतना है साथी,
परहित देखें पल भर जी कर।

 त्याग को आदर्श बनाकर,
 सार्थकता न हो जीवन की।
 ढाई इंच मुस्कान बाँट कर,
 हर सकते हो पीड़ा मन की 

हाहाकार किस लिए मचा है,
कौन रहा है किसे पुकार ।
क्या रक्खा है इन बातों में,
चला जा मांझी तू उस पार।B

Wednesday 7 September 2022

तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे

तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।


कहो सुनोगे आज हमारी, या फिर अब भी समय नहीं है।

बकबक करता जाता हूँ मैं,ध्यान तुम्हारा और कहीं है।

कहना सुनना लो रहने दु, क्या रक्खा है इन बातों में।

मगर कभी घण्टो होती थी, छुप छुप कर उन मुलाकातों में।

हार गए है पर उस दिन हम, इसी हार को जीत लिखे थे।


तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।


याद तुम्हे है उन्ही दिनों हम, नई नई गजलें कहते थे।

तुम्हे बिठा कर सपनों में ही, घण्टो बतियाया करते थे।

नई नई कविता  लिखते थे, अब भी जो अच्छे लगते है।

यति गति छन्द राग नही पर, शब्द शब्द सच्चे लगते है।

हर शब्दो मे तुम्हे पता है, तुझको ही मनमीत लिखे थे।


तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।


किसी किताबो के झुरमुठ में, पड़े हुए है कही कही पर।

बीवी बच्चों से डर से ही, कभी छुपा कर रखा वहीं पर।

दबे दबे उन पन्नों से भी, आह कभी तो उठती होगी।

उन गीतो को गा न सका पर, गाऊँगा जब तुम बोलोगी।

उन गीतों में हमने मिलकर, कभी प्रीत के रीत लिखे थे।

तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।






Sunday 4 September 2022

क्या उससे भी बुरा होगा

हैं झूठे ख्वाब सारे टूट जाने दे भला होगा।
बुरे जो दिन गुजारे है, क्या उससे भी बुरा होगा।
यहां इतना अँधेरा था कि कोई भी दिया लेकर,
उजाला ढूढने निकला भटक कर मर गया होगा। 

Sunday 28 August 2022

मुक्तक

कोई कितना भी पुकारे, पाँव पर हिलता नहीं।
भीड़ है चारो तरफ पर आदमी मिलता नहीं।
आज कल क्या हो गया है, बागबां को दोस्तों,
खार है हर साख पर बस, गुल कोई खिलता नहीं।

Thursday 19 May 2022

मुक्तक

लगा कर आग लोगों ने भले सपने जला डाले।
मुझे है हौसला देते ये मेरे पाँव के छाले।
बुरी है आह बच कर चल किसी की बद्दुआओं से,
कभी खुद टूट जाएंगे, घरों को तोड़ने वाले।

महरण घनाक्षरी



जिसने भी ऊगली थमाई ताकि खड़े होके,
निज पाँव चल सके करे निज काम जी।
गरदन उनकी मरोड़ने बढ़ाए हाथ,
करते हैं पग पग उन्हें बदनाम जी।
ऐसे परबुधियों को नर्क भी नसीब न हो,
करते है खुद की ही जिंदगी हराम जी।
जिस थाली खाई उस थाली को ही छेदते है,
ऐसे लोग भूखे मर जाये मेरे राम जी।

Friday 6 May 2022

मुक्तक : घरों को तोड़ने वाले।

लगा कर आग लोगों ने भले सपने जला डाले।
मुझे है हौसला देते ये मेरे पाँव के छाले।
बुरी है आह बच कर चल किसी की बद्दुआओं से,
कभी खुद टूट जाएंगे, घरों को तोड़ने वाले।

Wednesday 26 January 2022

शेर

इतनी समझ तो मुझको भी है यारों दुनियादारी की।
दो पैसे के खातिर किसने कब मुझसे मक्कारी की।
रुपये पैसे बंगला गाड़ी बात हो हिस्सेदारी की।
मेरे हिस्से में फिर रखना दौलत को खुद्दारी की।

Sunday 26 September 2021

कुण्डल छन्द:मद्यपान


गटक रहा सदा जहर, मरा नही तो क्या।
नष्ट जान माल अगर ,करा नहीं तो क्या।
पड़े पड़े चले गए, नशा करे  तू जा।
बड़े बड़े हुए खतम, अभी  मरे तू जा।

दिवस गुजर रहा नहीं, नींद नहीं रैना।
तन मन धन रुग्ण हुआ, चैन नही नैना।
बहुत पिया अभी जरा ,  चेत जा न प्यारे।
जीवन ना कटे  कहीं, रोग के सहारे।

समय कभी रुका नहीं, झुका ना झुकाए।
दो घूंट बैठा पिये, आँख क्या दिखाए।
उतर गया नशा कहीं, बात बनाएगा।
नजरों  से तेरे  तुझको,  यही गिरायेगा।


कितने घर उजड़ गए, उजाड़े मधुशाला।
आदमी को भी घोल, गटक गया प्याला।
रिश्ते नाते ना रहे, छोड़ गए सारे।
हाल पूछेने यहाँ, आय आज द्वारे।

आज एक बात मान, यार बन्धु भाई।
छोड़ बुरे काम मिले, नरक से रिहाई।
नैन मिला प्यार बढ़ा, गीत मस्त गा ले।
दिल कोई टूट गया, नया दिल बनाले।

कहाँ कहाँ भटक रहे, दिखे अधमरा सा।
जीवन से रोग भगा, चेत जा जरा सा।
हुआ अभी उमर नहीं, बचा ले जवानी।
चुन ले जिंदगी नया, छोड़ कर नदानी।


बन्द करो बन्द करो, बन्द करो पीना।
छोड़ दो अब शराब, चाह रहे जीना।
है उड़ान शेष बहुत, आसमान भी है।
लाय चाँद तोड़ यहाँ, आज आदमी है।


मथुरा प्रसाद वर्मा 
प्रतिभगी क्रमांक 5

कुण्डलिया : मित्रता



भूलो ना बन कृष्ण तुम, सखा सुदामा दीन।
 मित्र नहीं  कोई बड़ा, होय न कोई हीन।।
होय न कोई हीन, मित्रता करे बराबर।
तन मन होते एक, मित्र को गले लगाकर।।
राज पाठ का मोह, पाय सुग्रीव न झूलो।
अपनालो बन राम, मित्र को कभी न भूलो।।1।।



भूलो मत है मित्रता, इस जग में अनमोल।
मित्रों के भाते सदा, कड़वे मीठे बोल।।
कड़वे मीठे बोल, खोल  दे दिल के ताले।
भय लालच कर त्याग, सदा सच कहने वाले।।
मिले जहाँ ये मित्र, हृदय को उनके छु लो।
दुनियां दारी भूल, कभी मत उनको भूलो।।2।।


भूलोगे यदि मित्रता,  पड़ कर के निज स्वार्थ ।
कौन करेगा फिर भला, इस जम में परमार्थ ।।
इस जग में परमार्थ, नहीं यदि होगा भाई।
फिर कैसे ये प्रेम, व्यर्थ होगी कविताई।।
गले लगा कर यार, कहा पर तुम झूलोगे।
किसे रखोगे याद, अगर इनको भूलोगे।।3।।


भूलो को जो भूल कर, गले लगा ले यार।
मित्रों के सँग बैठ कर, तज देता संसार।।
तज देता संसार, बिना जो तनिक विचारे।
ऐसे होते यार, चले सँग यम के द्वारे।।
पा कर ऐसे मित्र, करे मन नभ को छू लो।
मित्र न ऐसे भूल, भले यह दुनियां भूलो।। 4।।


भूलो मत संसार में, है मतलब की प्रीत।
स्वार्थ साध कर त्याग दे, यही जगत की रीत।।
यही जगत की रीत, कोन है साथ किसी के।
जहाँ मिले ऐश्वर्य, सभी हो साथ उसी के।।
भागेंगे दुख छोड़, देख ना इनको फूलो।
मानो मेरी बात, मित्र को ऐसे भूलो।।5।।


भूलो ना ये मित्रता, भूलो ना ये मित्र।
ले जाते सत्मार्ग में, उत्तम रखे चरित्र।।
उत्तम रखे चरित्र, करे तन मन को निर्मल। 
जो जीवन के मूल्य, सिखाते हमको प्रतिपल।।
होते ये अनमोल, हृदय को इनके छू लो।
दुख पीड़ा सन्ताप, और अब इनको भूलो।।6।।


*मथुरा प्रसाद वर्मा*
ग्राम- कोलिहा, जिला - बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़)

Sunday 18 April 2021

दु गीत मया के गावन दे।

दू गीत मया के गावन दे।
 दू गीत मया के गावन दे।

एक गीत यार जवानी के 
जिनगी के प्यार कहानी के।
एक गीत अमर बलिदानी बर।
लहू डबकात जे रवानी बर।
बिरवा मँय बोयें जिनगी भर, 
अब फूल सहीं ममहावन दे।

सब मीत मोर सब सँगवारी।
जावत हावे आरी पारी।
कब मोर बुलावा आ जाही।
कब साँस कहाँ थीरा जाही।
जब बोझ साँस के ढोवत हँव,
मन के मनमीत सुनावन दे।

कतको जाही कतको आही।
कवि अपन पिरा ल गोहराही।
ये दुनिया आनीजानी ये ।
जिनगी के इही कहानी ये।
ये रंगमंच मा आज महुँ ला,
रस घोरन दे बरसावन दे।








Monday 1 March 2021

मुक्तक : मोर अँगरी धर चलव।


 एक दिन वो पार जाबो ये भरोसा कर चलव।
पोठ रख विस्वास मन के छोड़ जम्मो डर चलव।
मँय सुरुज के सारथी बन लड़ जहूँ अँधियार ले,
जे विहिनिया चाहथे वो मोर अँगरी धर चलव।

Wednesday 17 February 2021

अमृत ध्वनि छंद : मोर कराही


मोर कराही कस हृदय, सब बर हे अनुराग।
माढ़े आगी के ऊपर, दबकावत हँव साग।
दबकावत हँव, साग सबे बर, किसम किसम के।
हरदी मिरचा, मरी मसाला, डारँव जमके।
मन के भितरी,पोठ चुरत हे,  साग मिठाही।
कलम ह करछुल, कविता मोरे,मोर कराही।

Wednesday 10 February 2021

छत्तीसगढ़ी गजल : बेंच दे है सब कलम बाजार मा।


कोन लिखथे साँच अब अखबार मा।
बेंच दे हे सब कलम बाजार मा।

नाँव के खातिर मरे सनमान बर।
रेंगथे कीरा सहीं दरबार मा।

साँच बोले के जुलुम होगे हवे।
काट मोरो  घेंच ला तलवार मा।

हाँ तहूँ जी भर कमा ले लूट ले,
तोर मनखे बइठगे सरकार मा।

तँय कहूँ ला सोज रद्दा झन बता, 
जे भटकथे घर बनाथे खार मा।

तँय मसाला डार जे जतका मिले,
नून कमती नइ चलय आचार मा।






Tuesday 20 October 2020

प्रसाद के पद : सखी री, जूते उनको मार

सखी री, जूते उनको मार।
जो कर के वादा फिर मुकरे, गिन गिन के दे चार।
लोकतंत्र को बना खिलौना, खेले बारम्बार।
तन के उजले मन के काले, करते है मनुहार।
पद-पैसे पर मोहित होकर, बिक जाते बाजार।
लुटे निर्धन के धन को जो, और लाज को नार।
सातो पुरखे तर जाएगे,  ऐसे कर बौछार।
नियम नीति धर झोली में, दफ्तर में व्यापार।
रिश्वत के ऐसे पंडो के, सारे भूत उतार।
भ्रष्टाचारी जो अधिकारी, बने देश पर भार।
नेताओ से गठबंधन कर,  बैठे है दरबार।
भोली भाली भूखी प्यासी, जनता है लाचार।
शासक हो गए अँधे बहरे, कौन सुने चीत्कार।

Tuesday 13 October 2020

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल - रोज सुध कर के जेकर छाती जरे

  2122  2122   212

रोज सुध कर के जेकर छाती जरे।
नइ फिरय वो फेर अब बिनती करे।

कोन बन मा जा भटक गे राह ला 
रेंगना आइस जिखर अँगरी धरे।

तँय लगा बिरवा मया के चल दिये,
देख आ के वो कतक फूले फरे ।

हे अँजोरी घर म तोरे नाँव ले, 
जोत अँगना मा बने रोजे बरे ।

जब गिरे के बाद कोनो थामथे
जान लेथव हाथ वो तोरे हरे।

लेस दे जे घर अपन वो मोर सँग मा आय।

देख के रद्दा म काँटा मँय मढाथव  पाँव।
अउ दही के भोरहा कपसा घलो ला खाँव।
झन कहूँ बिजहा मया के बोंय के पछताय।
लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय।

फूल पर के भाग काँटा मोर हे तकदीर ।
मोर मन ला भाय सिरतों ये मया के पीर।
रोय भीतर फेर बाहिर हाँस के मुस्काय।
लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय।

घाम सह के प्यास रह के जे नही अइलाय।
जे भरोसा राम के तुलसी सहीं हरियाय।
मोर बिरवा हा मया के रातदिन ममहाय। 
लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय।

Tuesday 6 October 2020

लेस दे जे घर अपन वो मोर सँग मा आय।

देख के रद्दा म काँटा मँय मढाथव  पाँव।
अउ दही के भोरहा कपसा घलो ला खाँव।
झन कहूँ बिजहा मया के बोंय के पछताय।
लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय।

फूल पर के भाग काँटा मोर हे तकदीर ।
मोर मन ला भाय सिरतों ये मया के पीर।
रोय भीतर फेर बाहिर हाँस के मुस्काय।
लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय

घाम सह के प्यास रह के जे नही अइलाय।
जे भरोसा राम के तुलसी सहीं हरियाय।
मोर बिरवा हा मया के रातदिन ममहाय। 
लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय।

Sunday 16 August 2020

कुण्डलिया

होरी हर मन मा जलय,  मिटय कुमत कुविचार।
मथुरा मया गुलाल ले, नाचय बीच बजार।
नाचय बीच बाजार, फाग गा गा संगी।
मदहा समझय लोग, समझ ले कोई भंगी।
पिचकारी भर रंग, छन्द बरसाहँव गोरी।
साधक सब सकलाय, मात गे हमरो होरी।

Saturday 15 August 2020

एक पैरोडी

कइसे तरे
कइसे तरे

कइसे तरे हो रामा कइसे तरे।
भजन बिना प्राणी कइसे तरे।

भटक रहा दुनियाँ  क्यों मारा मारा ।
क्या लेके आया था क्या है तुम्हारा।1।

जब तक तू पर हेत खोदेगा खाई।
सुख पायेगा  कैसे  तू मेरे भाई।2।

ये दुनियादारी तुझको तो दुख देगा भारी।
आनंद के सागर है  मेरे बाकेबिहारी।2।

इस दुनिया मे किसका कौन है सहारा।
रामनाम जप मनवा तू पायेगा किनारा ।4।

भजन श्यामसुंदर है भजन सुर-मीरा ।
भजन राम तुलसी और पागल कबीरा।5।




मुक्तक

चरण की वंदना करके, नवा कर शीश बोलूंगा।
सिया मजबूरियों ने था, ओठ वो आज खोलूंगा।
मेरी हक की जो रोटी है मुझे देदो मैं भूखा हूँ,
नहीं तो बाजुओं से फिर तेरी औकात तोलूँगा।

तेरी कुर्सी तेरा सत्ता सियासत आज रोयेगा।
मेरी आँखों का पानी आज सारे दाग धोएगा।
मेरा बच्चा जो रोता आया सदियो भूख के आशु,
जो आशु आँख से उतरा यहाँ बारूद बोयेगा।


Sunday 19 January 2020

अमृत धावनि छंद : काँटा

काँटा बोलय गोड़  ला, बन जा मोर मितान ।
नेता मन ला आज के, जोंक बरोबर जान ।
जोंक बरोबर, जान मान ये, चुहकय सबला।
बन के हितवा, स्वारथ खातिर, लूटय हमला ।
धरम जात मा, काट काट के, बाँटय  बाँटा ।
आगुवाए ले, सदा गोड़ ला, रोकय काँटा । 

Sunday 13 January 2019

कुण्डलिया

कौन छुरे को देख कर, बकरा करे बवाल।
गले लगा कर तू बता, किससे होय हलाल।
किससे होय हलाल, आज ये चुनना होगा।
अब सब कर मतदान, सिर को धुनना होगा।
ले सारे पहचान , आदमी आज बुरे को।
आज समझ कर चाल, तोड़ दे कौन छुरे को।

दोहे

जब जब मेरी भूख ने, माँग लिया अधिकार।
तब तब रोटी रुठ कर, खोज रही मनुहार।

अम्मा जाने बेहतर, बच्चों से संसार ।
क्यों बकरी से भेड़िया, जता रहा है प्यार।

पतझर मुझसे माँगता, मेरा  रोज  बसन्त।
सावन नैनो को सदा, देकर जाते कन्त।


लाेकतंत्र है बावरे, क्यों कर रहा बवाल।
बढ़िया छुरा देख कर, हो जा आज हलाल।





Saturday 12 January 2019

आल्हा : मुसवा

विनती करके गुरू चरण के, हाथ जोर के माथ नवाँव।
सुनलो सन्तो मोर कहानी,पहिली आल्हा आज सुनाँव।।

एक बिचारा मुसवा सिधवा, कारी बिलई ले डर्राय।
जब जब देखे नजर मिलाके, ओखर पोटा जाय सुखाय।।

बड़े बड़े नख दाँत कुदारी, कटकट कटकट करथे हाय।
आ गे हे बड़ भारी विपदा,  कोन मोर अब प्रान बचाय।।

देखे मुसवा भागे पल्ला, कोन गली मा  मँय सपटाँव।
नजर परे झन अब बइरी के,कोन बिला मा जाँव लुकाँव।

आघू आघू  मुसवा भागे ,  बिलई  गदबद रहे कुदाय।
भागत भागत मुसवा सीधा, हड़िया के भीतर गिर जाय।

हड़िया भीतर भरे मन्द हे, मुसुवा उबुक चुबुक हो जाय।
पी के दारू पेट भरत ले,तब मुसवा के मति बौराय।

अटियावत वो बाहिर निकलिस, आँखी बड़े बड़े चमकाय।
बिलई ला ललकारन लागे, गरब म छाती अपन फुलाय।

अबड़ तँगाये मोला बिलई , आज तोर ले नइ डर्राव।
आज मसल के रख देहुँ मँय, चबा चबा के कच्चा खाँव।

बिलई  सोचय ये का होगे, काकर बल मा ये गुर्राय।
एक बार तो वो डर्रागे, पाछु अपन पाँव बढ़ाय।।

बार-बार जब मुसवा चीखे , लाली लाली  आंख दिखाय।
तभे बिलइया हा गुस्सागे, एक झपट्टा मारिस हाय।

तर- तर तर -तर तेज लहू के, पिचकारी कस मारे धार।
प्राण पखेरू उड़गे  तुरते, तब मुसवा हर मानिस हार।

तभे संत मन कहिथे संगी, गरब करे झन पी के मंद।
पी के सबके मति बौराथे, सबके घर घर माथे द्वंद।

घर घर मा हे रहे बिलइया, रहो सपट के चुप्पे चाप।
बने रही तुहरो मरियादा, गरब करव झन अपने आप।

Saturday 9 June 2018

रूपमाला




तुम किरण थी  मैं अँधेरा, हो सका कब  मेल।
खेल कर  हर बार हारा, प्यार का ये खेल।।
नैन उलझे  और सपने , बुन सके  हम लोग।
आज भी लगता नही ये, था महज संजोग।1।




मैं जला जलता  रहा हूँ,  रात भर अनजान।
आप रोटी सेंक अपना, चल दिये  श्रीमान।।
मैं सहूँगा हर सितम को , मुस्कुराकर यार।
आप ने मेरी मुहब्बत, दी बना बाजार।2।

Thursday 1 March 2018

कोई हादसा हो गया होगा ।


कोई हादसा हो गया होगा ।
वो चलते-चलते सो गया होगा ।

बदहवास गलियों में फिरता है,
कोई अपना खो गया होगा ।

मेरे दुशमनों को फुरशत कहाँ है,
कोई दोस्त ही कांटे बो गया होगा ।

वो आज-कल मुंह छिपाता फिरता है।
रूबरू आईने से हो गया होगा ।

प्रसाद' मेरा कफन अब भी गिला है,
कोई छुप-छुप के रो गया गया होगा !

Saturday 27 May 2017

मुक्तक

तुझको खयालो में सही कुछ तो मैंने पाया था।
ख्वाब टूटा तो ये जाना कि वो  तेरा साया था।
तू चला जा कि अब मैं लौट कर न जाऊंगा,
मैं तेरे साथ बहुत दूर चला आया था।

Tuesday 21 February 2017

काम आया है

सुबह का भुला शाम आया है।
हो करके बदनाम आया है।

सियासत का रोग लगा था,
करके सारे काम आया है।

आस्तीन में छुरी है पर,
मुँह पर अल्ला राम आया है।

किस किस को लगाया चुना,
बना के झंडुबाम आया है।

खादी तन पर पहन के घुमा,
होकर नँगा  हमाम आया है।

वादे बड़े बड़े करता है,
कभी किसी के काम आया है?

अब के किसको चढ़ाएं सूली
पहले मेरा नाम आया है।

प्रसाद' रखता जेब में रोटी,
क़बर में जा काम आया है।

मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'

Tuesday 24 January 2017

देशभक्ति की शायरी

1
श्रम के माथे से टपके, जो पानी हो तो ऐसे हो ।
वतन पर जान दे दे जो, जवानी हो तो ऐसे हो।
तिरंगा ओढ़ कर आया है जो शहीद सरहद से
कि  हमको नाज है उनपर कहानी हो तो ऐसे हो।

2

कोई पत्थर नहीं ऐसा , न उनपर नाज करता है ।
गिरा कर खून मिटटी पर  जो ,चमन आबाद करता है।
नमन करने को जो जाते है कट कर शिश भूमि पर,
माँ के उन लाडलो को आज दुनियां याद करता है।

3

बुलंदी और भी  है पर , उनकी बात निराली है,
सहादत कर जो माटी चूमते है भाग्यशाली हैं,
वतन का जर्रा जर्रा शदियों तक उनका कर्ज ढोएगा
कि अपनी जान दे कर करते वतन की रखवाली है।

4
रुधिर जो लाल बहती है , मैं उनका मान जगाऊँगा।
विप्लवी गान गा गा कर सोया स्वाभिमान जगाऊँगा।
जगाऊँगा मैं राणा और शिवा के सन्तानो को,
नारायण वीर जागेगा, मैं सोनाखान जगाऊँगा।
5
सजाकर अर्थियो में जिनको तिरंगा मान देती है।
सहादत को उन वीरों के , माँ भारती सम्मान देती है।
कि उन पर नाज करती है हिमालय की शिलाएं भी,
चरण को चूम कर जिसके,  जवानी  जान देती है।
6
हजारो शत्रु आये पर , पर हमको कौन जीता है।
कभी हिम्मत के दौलत से न हमारा हाथ रीता है।
वंशज है भारत के हम ,धरम पर मर मिटने वाले,
खड्ग एक हाथ में थामे तो  दूजे हाथ में गीता है।
7
कोई दौलत पे मरता है, कोई शोहरत पे मरता है।
जो वतन से प्यार करता है, वो इस चाहत पे मरता है।
रहे खुशहाल मेरा देश और देशवासी भी,
अमर मरकर वो हो जाता है जो भारत पे मरता है।
8
शहीदों ने जिस ख़ातिर हँस कर चुम ली फाँसी। 
दिलाई कैसे कहते है हमें चरखे  ने आजादी ।
हम कैसे भूलकर उनकोएक अभी खुशियां मनाएंगे,
की जिनके खून के कीमत से हमने पाई आजादी।
9
हम हथेली पे जान रखते है।
हौसलो में  तूफ़ान रखते है।
कह दिया है मेरे देश के सेना ने,
हम भी मुह में जुबान रखते है।
10
ये कैसी देशभक्ति है हम सिर्फ नारा लगाते है।
चंद रुपियो के खातिर देशहित से जी चुराते है।
धमकाते है हमारी सेना  पर जो  तानकर  हथियार
हम चीनी माल ले लेकर उनका हौसला बढ़ाते है।


Saturday 21 January 2017

एक सच

सुन कर आश्चर्य होगा
मुझे ज्यादातर कविताएं
तब सूझती है
जब मैं
टॉयलेट सीट पर बैठा होता हूँ।
और वहाँ से उठकर,
कागजपर लिखकर
मैं  हल्का बहुत हल्का होता हूँ।

इंसानियत कहाँ खो गया ?

उस दिन बड़ा अजीब  हादसा हुआ मेरे साथ।
मैंने कुछ पर्ची में विरुद्धर्थी शब्द लिख कर बच्चो में बाट दिया।

कहा - अपने अपने उलटे अर्थ वाले शब्द जिनको मिले है खोज लो।
कुछ देर तक बच्चे सोर कर के पूरे कक्षा में अपने साथी खोजते रहे।

सच कह रहा हूँ

सारे शब्द मिले

उनके विरुद्धर्थी शब्द मिल गए

एक बच्चा वो पर्ची लेकर अकेले खड़ा था

जिसपर मैंने बड़े बड़े अक्षरों में हैवानियत लिखा था।


इंसानियत कहाँ खो गया आज तक नहीं मिला।

मथुरा प्रसाद वर्मा

Monday 9 January 2017

लाचार हो गया हूँ।


अपने  हालत   पे  यूँ लाचार  हो गए  हैं.
आम  थे  कभीआचार हो गए  हैं.

अपनी  आजादी पे किसकी नज़र लगी प्यारे 
उम्र भर के लिए गिरफतार हो गए हैं . 

भूख लगी तो हमने रोटी क्या मांग ली,
उनकी निगाहों में गुनाहगार हो गए हैं .

वो   देने  आया था दर्दे दिल का दवा हमें
सुना है इन दिनों बीमार हो गया  हैं.

सुना है कुछ बेईमान लोगों ने कैसे ,
कुछ जोड़ तोड़ की है ओर सरकार हो गए है 

दुया मांगी थी कभी खुशियों की मैंने 
उसी दिन से मेरे हाथ बेकार हो गए है 

पूरी यात्रा

मित्रो कुछ दिनो पहले मुझे जगन्नाथ जी के दर्शन हेतु पुरी जाने का अवसर मिला

Wednesday 26 October 2016

न टूटे

ज़माना छोड़ दे तन्हा,नजर सायें भी न आये ।
तुम इतना दुआ करना कि अपना साथ न छूटे ।।

भले मझधार में हो कश्ती तूफा कहर बरपाये।
तुम इतना हौसला रखना मेरा हाथ न छूटे।।

शौक से मुस्कुराना तुम तुम्हारे मुस्कुराने से
मगर ये ख्याल भी रखना किसी का दिल कही न टूटे।।

महफ़िल है तो महफ़िल में बहुत् होंगे शिकायते
किसी के रूठ जाने से  मगर ये महफ़िल न टूटे।

मेरी कविता


ऐ मेरी कविता !

ऐ मेरी कविता  !

मैं सोचता हूँ लिख डालूं ,

तुम पर भी एक कविता ! 
रच डालूं अपने बिखरे कल्पनाओं  को

 रंग डालूंस्वप्निल इन्द्र धनुषी रंगों से,

तेरी चुनरी !
बिठाऊँ शब्दों की डोली में

और उतर लाऊँ इस धरा पर !
किन्तु मन डरता है 

ह्रदय सिहर जाता है ,

तुम्हे अपने घर लाते हुए !

की कहीं तुम टूट न जाओ 

उन सपनों की तरह 

जो बिखर गए टूट कर !


 

पलके बिछाएं हूँ अब तक !


उनके चाहत के सपने सजाएँ हूँ अब तक !उनके यादों को सिने में बसाये हूँ अब तक ! 
वो मासूम चेहरा, वो झील सी गहरी आँखें ;वो उनका मुस्काना ,वो उनका शर्माना,भोली सूरत को आँखों में छुपाये हूँ अब तक !
छुप-छुप के हमफिर  हथेली से अपना सहारा छुपाना ;कुछ भी तो नहीं भुला पाए हूँ अब तक !
वो जागी जागी, रातें वो तेरी बातें ;वो जुदाई के दिन , और वो मुलाकातें ;उन्ही यादों में कहाँ  ,  सो पाए हूँ अब तक !
प्यासी-प्यासी सी मेरी भीगी  निगाहें ;ताकती रहती है तेरी वो सुनी राहें ; तेरी राहों में पलके बिछाएं हूँ अब तक !

Tuesday 7 June 2016

उजाले के फरेब

वो रौशनी ओढ़ कर,
 अन्धियारे को
 छलना चाहता था।

वो किरण को अपने चेहरे पर,
मलना चाहता था।

वो पगला था ,
 दिए की तरह
जलना चाहता था ।

सच्चाई के पथ
 पर अकेले,
चलना चाहता था।

उसने सीखा था
जीवन से ,
सिर्फ अन्धियारे से डरना।

बहुत मुश्किल होता है
बिना तेल और बाती के जलना।

वो नहीं जनता था
 उजाले के फरेब को।

उजाला टटोलती है,
आदमी के जेब को।

उजाले के चकाचौंध ने
हर आदमी को छला है।

पतंगा है तो
कभी न  कभी
जरूर जला है ।

वो गिरा है
अक्चकाकर वहाँ,
जहाँ उजाले का घेरा है।
और
तब से अब तक
 उसके आँखों में
सिर्फ अँधेरा है।

मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद"

Wednesday 18 May 2016

याद तुम्हारी आती है।

कोई भवरा गाता है जब,
जब कोई कली शरमाती है।
खिल उठती है कली कोई,
गलियाँ महक जब जाती है।

तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।

चलती है बसन्ती मन्द पवन,
झूम उठता है तन मन।
चिड़ियों की सुन युगल तान
जब साम ढल जाती है।

तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।

मतवाला हो जाता ये गगन।
झूम कर बरसता जब सावन।
घुमड़-घुमड़ कर काली घटा,
जब  धरती पर छा जाती है।

तो सच  प्रिये !
याद तुम्हारी आती है।

ऊँचे-ऊँचे परवत शिखर पर ,
नित बहते है जहां निर्झर।
दूर क्षितिज के छोर पर
जहां नभ् भी झुक जाती है।

तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।

कभी तारों की  बारातों में।
जब देखूं चाँदनी रातों में।
करती चाँद अठखेली
जब बादल में छिप जाती है।

तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।।

दूर कहीं जब गाँवों में।
बजती है पायल पावों में।
आकर सजन की बाँहों में
नववधू कोई शरमाती है।।

तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।।

अरे सावन ! तुम क्यों आते हो।

बादल बन कर छा जाते हो।
रिमझिम बरखा बरसाते हो।
प्रिय मिलन की आश जगा कर
बिरहन को तरसाते हो।
             अरे सावन! तुम क्यों आते हो।

ला कर  शीतल पुरवाई तुम,
डाल डाल  महकते हो।
विरहा मन मेें आग लगाकर
तुम क्यों मुझे रुलाते हो।
          अरे! सावन तुम क्यों आते हो।

प्रेम सुधा तुम बरसा कर
वसुधा की प्यास मिटाते हो।
और इधर तुम प्रेम बावरी के,
मन की प्यास बढ़ाते हो।
           अरे सावन! तुम क्यों आते हो।


मजबूर कवि

मैं अदना सा कवि,
लिखने के सिवाय
कुछ कर नहीं सकता।

चीख सकता हूँ,
चिल्ला सकता हूँ,
मगर लड़ नहीं सकता।

मरने के लिए
हर रोज जी लेता हूँ
मगर जिन्दा रहने के लिए
एक बार मर नहीं सकता।

कैप्शन जोड़ें

तेरे कदम भी बहके क्यों?

फूल हूँ ये गुमान था तो,
मेरी गली में महके क्यों?

मैं हुआ मदहोश था पर,
तेरे कदम भी बहके क्यों?

अगर घटाएं घिर आये तो,
एक बून्द की आस न हो?

छलकते गागर को देखूं ,
क्यों थोड़ी भी प्यास न हो?

   प्यास मेरा गुनाह था पर,
   गगरी तेरी छलके क्यों?

माना अंधियारे में जीने की,
मेरी अपनी आदत थी।

एक दिया जले इस आँगन में,
यह भी तो मेरी चाहत थी।

   मुझे चाह थी एक किरण की
  तुम शोला बन दहके क्यों?

रेगिस्तान मेरा मन था,
पतझर ही था मेरा जीवन।

मान विधाता की नियति,
कभी न चाहा मैंने उपवन।

   मेरे आँगन के बाबुल में,
कोई विहंग फिर चहके क्यों।।



Monday 1 February 2016

मुक्तक

नजर में हो कोई परदा, नजारा हो तो कैसे हो ।।
कोई जब डूबना चाहे , किनारा हो तो कैसे हो।।
किसी के हो न पाये तुम, यहां पल भी मुहब्बत में, 

बताओ तुम यहाँ कोई, तुम्हारा हो तो कैसे हो।

Wednesday 18 November 2015

घोटाले देंगे

सपने बड़े निराले देंगे।।
हर रोज नए घोटाले देंगे।।

राजनेता हम इस देश को।
बीवी ,बच्चे और साले देंगे।।

चाबी दे दे कर चोरों को
फोकट में सबको ताले देंगे।।

घासलेट महंगी हुई तो क्या है
नई दुल्हन को जलाने देंगे।।

सीमेंट ,रेत ,छड़ खाने वाले
भूखों को क्या निवाले देंगे।

काम न दे पाये हाथो को
तो त्रिशूल तलवार भाले देंगे।

अख़बार चलाने वाले हम तुमको
हर रोज नए मसाले देंगे ।

घर अपना जलाकर 'प्रसाद'
कब तक गैरो को उजाले देंगे।

जीवन के सपने

मैंने चाहा था कभी
जीवन के बेरंग कैनवास पर
हसिन सपनो से रंग देना।

मैं उम्रभर भागता रहा
उन्ही सपनो के पीछे।
तलाशता रहा दुनियाँ भर के रंग
ताकि जीवन हो सके रंगीन
सपनों की तरह।

किन्तु इस प्रयास में
न जाने कब ?
न जाने कैसे ?
जीवन हो गया बदरंग।
कैसे बिखर गए सपने
कैसे की बेवफाई
बेहया रंगों ने।

कितना अच्छा था मेरा जीवन
जन बेरंग था।
कम से कम
एक उम्मीद तो थी
रंग बिरंगे सपनो से
रंगे जाने की।

जीवन

जीवन

जीवन क्या सिर्फ इसलिए है
कि चाहे जैसे भी हो जिया जाये ।
इस हलाहल को पीना ही है तो
क्यों न मुस्कुरा कर पिया जाये।

कोई लक्षय नही पथ ही पथ है
और उनपर चलना सिर्फ चलना है।
सुविधाओ का बाट जोहते
आखिर कब तक हाथ मलना है।

संघर्षों से जी चुराते हुए
समझौते और कितने करने होंगे।
पल भर और जीने के लिए
कितनी बार और मरने होंगे।

कितना जी पता है मानव
जीवन को जीवन के जैसे।
साँसे हो गई है महंगी और
जीवन मुट्ठी के खोटे पैसे।

Tuesday 2 June 2015

प्यास


वो चींखने चिल्लाने वाले कौन है ?
कौन है?
कौन है ?

जो भूखे है ?
जो प्यासे है ?
बेघर है?
नंगे है ?
क्या उनके दंगे है ?

अरे नहीं !
उन्हें भला कहा फुर्सत है ?
वो क्यों  चीखेंगे ?
क्यों चिल्लायेंगे?

वो सब तो मौन है।

फिर भला ये कौन है?

ये वो है
जो ख़ास मौको पर आते है
हमारी भूख और प्यास
रोटी और गरीबी को
जो लोग भुनाते है।

ये वही लोग है जो चिल्लाते है
जो हमारी प्यास से
अपनी प्यास बुझाते है।

ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...