Saturday 14 January 2012


मुझको उम्मीदों का उजाला देती जा !

मुझको उम्मीदों का उजाला  देती जा ।
कोई तो निशानी प्यार वाला  देती जा ।


मै उम्रभर तेरा इंतजार कर सकता  हूँ ;
तू लौट आने का हवाला देती जा ।


किसी मयकस को प्यासा  लौटते नहीं ;
आ गया हूँ तेरे दर पे , इक प्याला देती जा ।

फिर न पिऊंगा किसी मयखाने में कभी
तू आज अपनी नैनो की मधुशाला देती जा ।

वो तेरी हर भूख मिटा देगा देखना ;
तू भूखे बच्चे को निवाला देती जा !






जीत की सौगात

अन्नाजी को सलाम !
हर एक हार जीत की शुरुवात होती है !
हार सुबह से पहले एक लम्बी रात  होती है !
जो हार कर भी हिम्मत कभी हराते नहीं ;
उन्ही के मुकद्दर में जीत की सौगात होती है !

Friday 13 January 2012

माँ छोटी सी बन्दुक दे-दे

माँ छोटी सी बन्दुक दे-दे ,
मैं सेना में जाऊंगा !
डटा रहूगा सरहद पर,
भारत की  लाज  बचाउंगा  !


आज देश की माटी का ,
जन  जन को यही पुकार है  !
जो  देश  के काम न आये ,
 उस जीवन को धिक्कार है!!


मैं अपने लहू का कतरा-कतरा ,
देश हित में बहाऊंगा !
कर दूंगा सीना छलनी-छलनी ,
दुश्मन को धुल चटाउंगा !!


रणभूमि में पीठ दिखाऊं,
माँ ऐसा तेरा लाल नहीं !
इस देश का सच्चा सैनिक हूँ मैं ,
कोई भोला बाल नहीं !

लडूंगा आंखरी साँस तक,
दुश्मन को मजे चखाऊंगा !
रक्षा करता देश का मैं ,
सीने में गोली खाऊंगा !!

माँ तू आँशु मत बहाना ,
जब मैं मारा जाऊंगा !
मातृभूमि की रक्षा करने
फिर तेरी कोख से आउँगा


Monday 9 January 2012

पहली बार !


एक दस्तक सा हुआ मन में ,
पहली बार!
खिला पुष्प , सुने आँगन में /
पहली बार /

हवाए महक उठी /
प्रीत की खुसबू से /
प्यारा सा लगा सावन /
पहली बार !

यौवन ने ली अंगड़ाई /
हलचल सी मच गई /
हृदय में
कोई मार गया कंकड़ /
ठहरे हुए पानी में /
पहली बार !

एक धुंधली  सी तस्वीर /
उभरने लगी बार बार /
स्मृति पटल पर /
बहुत कुछ खो कर हुआ /
कुछ पा लेने का एहसास /
पहली  बार !

इसी के कमाई से तो ये सरकार चल रही है !

नशा, नश-नश में समाई आज के समाज के ! 
नशे  के गुलाम हो रहे सारे नवजवान आज  के !
पीढ़ी - दर-पीढ़ी इसका प्रचार चल रही  है ! 
इसी के कमाई से तो ये सरकार चल रही  है !

हर जोर जुलम के टक्कर मैं; संघर्ष हमारा नारा है!

अंधियारों ने बहुत सताया नया सबेरा लाना है!!
 गावं -गावं और घर-घर जाकर दीप नए जलना है !!
जब-जब अत्याचार बढे है ;हमने यही पुकारा है !
 हर जोर जुलम के टक्कर मैं; संघर्ष हमारा नारा है!


 हम भारत  नन्हे सिपाही ;माँ की लाज बचायेंगे बचायेंगे !
 जिस दुश्मन ने आँख उठाई हम उनसे टकरायेंगे !


 आन हमें भारत माता का प्राणों से भी  प्यारा है !!
 हर जोर जुल्म के 


न मंदिर न मस्जिद न गिरिजा  घर गुरुद्वार हो !
 ये चाहत है मानवता की ; आपस में भाई चारा हो !


 मिटायें आओ हर शोषण  को ; यह संकल्प हमारा है !!
 हर जोर जुल्म के 


शांति त्याग और खुशहाली का प्रीतिक प्यारा तिरंगा  है !
आन हमारा शान हमारा जान हमारा तिरंगा है !


झुकाना इसका मंजूर नहीं ;मर जाना हमें गवारा है !!
 हर जोर जुल्म के 

आत्मीय मित्र बन

हाड ,मांस, रक्त है , न  रंच   इसका आश कर  !
नाशवान  देह   है ;मोह  मुक्त  पाश  कर !!


अमर सदा है आत्मा ; नेह  जन्म  - जन्म का  !
रूप  रंग  भूल  कर  आत्मा में  वास  कर ।


प्रेम  का है मूल्य  क्या  , जो  छान भर टिके नहीं ।
तृष्णा अतृप्त  है ; भोग  और  विलाश   कर ।


वासना  है पुजती  ; देह सौंदर्य को,
याचना तो  स्यार्थ  है ; त्याग   में  विश्वास  कर।


व्यर्थ  का प्रपंच  रच  कोयला  काया  किया
बन  कुंदन  , कर साधना  , सकल  तृष्णा नाश कर ।


पा परम  स्नेह  मन  का, बन आत्मीय  मित्र  बन ;
काम मृग मार  दे  ; अंत  सब  प्यास  कर ।



Saturday 7 January 2012

भूख

भूख बढती गई , वो खाते  चले गए ।
उनके  पेट  में सब समाते चले गये ।
भूख उनका फिर भी न मिट सका ,
आदमी , आदमी को चबाते चले गए।

न अपनों की परवाह, न बेगानों की ।
भूख ऐसी होती है  बेइमानो की ।
ऐसे हैवान  भी छुपे है बीच हमारे  ,
पीते है खून जिन्दा इंसानों की ।

इसी भूख ने सरकार बना दिया ;
हर आदमी को गुनहगार बना दिया !
चलती रही विदेशी बैसाखी के सहारे 
देश को इतना  लाचार  बना दिया ।

कभी सड़क ,कभी जंगल,कभी पुल खा गए ।
कभी सीमेंट ,कभी रेट, कभी धुल खा गए ।
जय हो नेताओं तुम्हारे पेट की ;
ढकार न ली मगर सारा देश खा गए ।


सचमुच बड़ा बत्तमीज़ है आदमी !

सोचता हूँ मैं ; जाने  क्या  चीज है आदमीं !
ज़िन्दगी रोग है , मरीज है आदमीं !!

खुद को कभी जो पहचान पाया हो ;
ऐसा भी  कोई खुशनशीब है आदमीं !!

बटता गया है खुद को जिसके नाम पर ;
उस खुदा से क्या वाकिफ है आदमी !!

जरा सी डोर टूटी , और सांसे थम गई ;
मौत के कितने करीब है आदमी !

पर आदमी का फिर भी गुरुर न गया
सचमुच बड़ा बत्तमीज़ है आदमी !



छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया !




छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया , 

                               दुनियां ला ये देखना हे ।
आधा पेट खा के रे संगी,

                                 जांगर टोर कमाना हे ।









१, सोना-चाँदी, हिरा-मोती,

                                    इंहां के धुर्रा मटी हे ।
तभो ले सोसित दलित गरीबहा,

                                छत्तीसगढ़ के वासी हे ।
रतिहा पहागे अब तो संगी .

                                नवा बिहनिया लाना हे ।

आधा पेट .....................


२, खेत हमर कागद हे अऊ,

                                कलम हमर बर नांगर हे।

हरियर-हरियर धान हमर,

                             करम के उज्जर आखर हे ।

कौनो रहय अब अनपढ़ झन,

                                  पढ़ना अऊ पढ़ाना हे ।


आधा पेट ..........................



३ , जगे जगे रहिना हे संगी,

                             करना हे देश के रखवारी।

रखवार बन के करते वो मन,

                                    अब घर घर म चोरी ।

बेच दिही लालच में आ के,

                                    इंकर का ठिकाना हे।

घर माँ लुकाये चोर मन ले ,

                         मोर छत्तीसगढ़ ला बचाना हे।



उम्मीद

उम्मीद उन्हें थी चाँद की,हम जमी के धुल निकले . 
हमने चाह जहाँ फुल था वहां कटीले सुल निकले ! 
बेपनाह इन चाहतों ने ; चाहतों का दम है घोटा ! 
आरजू बाद रही रोज है , आदमी हो रहा है छोटा !  

इंसान नही होते।

हिन्दू नहीं होते वो मुसलमां नहीं होते !
जो खून से खेलते है इन्सां नही होते !!

ऐसे उजाले से तो अँधेरा ही है बेहतर
जो घर को जला दे वो समां नहीं होते !!

चला आता है बुडापा बेवक्त उनके पास
कुछ बच्चे मेरे गांव के क्यों जवाँ नहीं होते !!

मजहब के नाम पे जो बताते है इनसानों को
वो  मुल्क के दुश्मन है मेहमां नहीं होते !!

ये अमन नहीं होता ये चमन नहीं होते
गर हौसलों में अपने तुफां नहीं  होते !!




जिगर पीते है.

जुदाई में गम का जहर पीतें है .
रोकती ही दुनिया हम मगर पीतें है .


कौन कहता है मेरे हाथों में शराब है ,
हम तो अपना जिगर पीते है.


कभी कभी सारा सहर लड़खड़ाता है ,
उनके यादों में हम इस कदर पीतें है .


पिए बिना अब हमको होश नहीं आता है 
यारो हम अब साम ओ सहर पीतें है 


तेरा गम  कहा हमको बनती शराबी 
कहा हम  कोई उम्र भर पीते है .


किसे  है प्रसाद चाहत तेरे जीने की ,
हर अंजाम से हो हम बेखबर पीते है .





तेरी गम ए जुदाई पी ली .

तेरी गम ए जुदाई पी ली .
तुने जो पिलाई पी ली.
लोग कहते रहे शराब, 
हमने समझ के बेवफाई पी ली .


कभी ज्यादा पी, कभी  कम  पीया .
कभी ख़ुशी पी  कभी गम पीया   
जब भी तेरी याद आई पी ली 


कभी गैरों ने , कभी आपनों  ने 
कभी हकीकत,कभी सपनों ने 
जब भी हमें सताई पी ली .


क्या बुरा किया जो  पीया  मैंने 
तुझे याद कर जो जिया मैंने 
तुने जीतनी पिलाई पी ली 



ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...