Tuesday 21 February 2017

काम आया है

सुबह का भुला शाम आया है।
हो करके बदनाम आया है।

सियासत का रोग लगा था,
करके सारे काम आया है।

आस्तीन में छुरी है पर,
मुँह पर अल्ला राम आया है।

किस किस को लगाया चुना,
बना के झंडुबाम आया है।

खादी तन पर पहन के घुमा,
होकर नँगा  हमाम आया है।

वादे बड़े बड़े करता है,
कभी किसी के काम आया है?

अब के किसको चढ़ाएं सूली
पहले मेरा नाम आया है।

प्रसाद' रखता जेब में रोटी,
क़बर में जा काम आया है।

मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'

ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...