क्या क्या करें
क्या क्या न करें ।
हमने उनपे सब छोड़ा है
जो करना है वो खुदा करे ।
बचपन की उखड़ती सांसे है।
ममता की बेबस आँखें है।
वो फिर भी महल बनायेंगे;
कोई मरता है तो मरा करे ।
यहाँ ख़ून से आटा सनती है।
तब जाकर रोटी बनती है।
हर दाने पर पहरे बैठे है;
जिन्हें भूख लगे वो दुवा करे।
जब जुल्म की आंधी चलती है।
इन्साफ कुचल दी जाती है।
यहाँ न्याय गवाही मांगेगी;
अन्याय भले ही हुआ करे।
यहाँ सच हमेसा हरता है।
और झूठ ही बजी मरता है।
"प्रसाद"मगर सच बोलेगा;
कोई सुने या अनसुना करे।।
- मथुरा प्रसाद वर्मा'प्रसाद'
क्या क्या न करें ।
हमने उनपे सब छोड़ा है
जो करना है वो खुदा करे ।
बचपन की उखड़ती सांसे है।
ममता की बेबस आँखें है।
वो फिर भी महल बनायेंगे;
कोई मरता है तो मरा करे ।
यहाँ ख़ून से आटा सनती है।
तब जाकर रोटी बनती है।
हर दाने पर पहरे बैठे है;
जिन्हें भूख लगे वो दुवा करे।
जब जुल्म की आंधी चलती है।
इन्साफ कुचल दी जाती है।
यहाँ न्याय गवाही मांगेगी;
अन्याय भले ही हुआ करे।
यहाँ सच हमेसा हरता है।
और झूठ ही बजी मरता है।
"प्रसाद"मगर सच बोलेगा;
कोई सुने या अनसुना करे।।
- मथुरा प्रसाद वर्मा'प्रसाद'