Wednesday 7 September 2022

तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे

तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।


कहो सुनोगे आज हमारी, या फिर अब भी समय नहीं है।

बकबक करता जाता हूँ मैं,ध्यान तुम्हारा और कहीं है।

कहना सुनना लो रहने दु, क्या रक्खा है इन बातों में।

मगर कभी घण्टो होती थी, छुप छुप कर उन मुलाकातों में।

हार गए है पर उस दिन हम, इसी हार को जीत लिखे थे।


तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।


याद तुम्हे है उन्ही दिनों हम, नई नई गजलें कहते थे।

तुम्हे बिठा कर सपनों में ही, घण्टो बतियाया करते थे।

नई नई कविता  लिखते थे, अब भी जो अच्छे लगते है।

यति गति छन्द राग नही पर, शब्द शब्द सच्चे लगते है।

हर शब्दो मे तुम्हे पता है, तुझको ही मनमीत लिखे थे।


तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।


किसी किताबो के झुरमुठ में, पड़े हुए है कही कही पर।

बीवी बच्चों से डर से ही, कभी छुपा कर रखा वहीं पर।

दबे दबे उन पन्नों से भी, आह कभी तो उठती होगी।

उन गीतो को गा न सका पर, गाऊँगा जब तुम बोलोगी।

उन गीतों में हमने मिलकर, कभी प्रीत के रीत लिखे थे।

तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।






Sunday 4 September 2022

क्या उससे भी बुरा होगा

हैं झूठे ख्वाब सारे टूट जाने दे भला होगा।
बुरे जो दिन गुजारे है, क्या उससे भी बुरा होगा।
यहां इतना अँधेरा था कि कोई भी दिया लेकर,
उजाला ढूढने निकला भटक कर मर गया होगा। 

Sunday 28 August 2022

मुक्तक

कोई कितना भी पुकारे, पाँव पर हिलता नहीं।
भीड़ है चारो तरफ पर आदमी मिलता नहीं।
आज कल क्या हो गया है, बागबां को दोस्तों,
खार है हर साख पर बस, गुल कोई खिलता नहीं।

Thursday 19 May 2022

मुक्तक

लगा कर आग लोगों ने भले सपने जला डाले।
मुझे है हौसला देते ये मेरे पाँव के छाले।
बुरी है आह बच कर चल किसी की बद्दुआओं से,
कभी खुद टूट जाएंगे, घरों को तोड़ने वाले।

महरण घनाक्षरी



जिसने भी ऊगली थमाई ताकि खड़े होके,
निज पाँव चल सके करे निज काम जी।
गरदन उनकी मरोड़ने बढ़ाए हाथ,
करते हैं पग पग उन्हें बदनाम जी।
ऐसे परबुधियों को नर्क भी नसीब न हो,
करते है खुद की ही जिंदगी हराम जी।
जिस थाली खाई उस थाली को ही छेदते है,
ऐसे लोग भूखे मर जाये मेरे राम जी।

Friday 6 May 2022

मुक्तक : घरों को तोड़ने वाले।

लगा कर आग लोगों ने भले सपने जला डाले।
मुझे है हौसला देते ये मेरे पाँव के छाले।
बुरी है आह बच कर चल किसी की बद्दुआओं से,
कभी खुद टूट जाएंगे, घरों को तोड़ने वाले।

Wednesday 26 January 2022

शेर

इतनी समझ तो मुझको भी है यारों दुनियादारी की।
दो पैसे के खातिर किसने कब मुझसे मक्कारी की।
रुपये पैसे बंगला गाड़ी बात हो हिस्सेदारी की।
मेरे हिस्से में फिर रखना दौलत को खुद्दारी की।

ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...