Sunday 26 September 2021

कुण्डल छन्द:मद्यपान


गटक रहा सदा जहर, मरा नही तो क्या।
नष्ट जान माल अगर ,करा नहीं तो क्या।
पड़े पड़े चले गए, नशा करे  तू जा।
बड़े बड़े हुए खतम, अभी  मरे तू जा।

दिवस गुजर रहा नहीं, नींद नहीं रैना।
तन मन धन रुग्ण हुआ, चैन नही नैना।
बहुत पिया अभी जरा ,  चेत जा न प्यारे।
जीवन ना कटे  कहीं, रोग के सहारे।

समय कभी रुका नहीं, झुका ना झुकाए।
दो घूंट बैठा पिये, आँख क्या दिखाए।
उतर गया नशा कहीं, बात बनाएगा।
नजरों  से तेरे  तुझको,  यही गिरायेगा।


कितने घर उजड़ गए, उजाड़े मधुशाला।
आदमी को भी घोल, गटक गया प्याला।
रिश्ते नाते ना रहे, छोड़ गए सारे।
हाल पूछेने यहाँ, आय आज द्वारे।

आज एक बात मान, यार बन्धु भाई।
छोड़ बुरे काम मिले, नरक से रिहाई।
नैन मिला प्यार बढ़ा, गीत मस्त गा ले।
दिल कोई टूट गया, नया दिल बनाले।

कहाँ कहाँ भटक रहे, दिखे अधमरा सा।
जीवन से रोग भगा, चेत जा जरा सा।
हुआ अभी उमर नहीं, बचा ले जवानी।
चुन ले जिंदगी नया, छोड़ कर नदानी।


बन्द करो बन्द करो, बन्द करो पीना।
छोड़ दो अब शराब, चाह रहे जीना।
है उड़ान शेष बहुत, आसमान भी है।
लाय चाँद तोड़ यहाँ, आज आदमी है।


मथुरा प्रसाद वर्मा 
प्रतिभगी क्रमांक 5

कुण्डलिया : मित्रता



भूलो ना बन कृष्ण तुम, सखा सुदामा दीन।
 मित्र नहीं  कोई बड़ा, होय न कोई हीन।।
होय न कोई हीन, मित्रता करे बराबर।
तन मन होते एक, मित्र को गले लगाकर।।
राज पाठ का मोह, पाय सुग्रीव न झूलो।
अपनालो बन राम, मित्र को कभी न भूलो।।1।।



भूलो मत है मित्रता, इस जग में अनमोल।
मित्रों के भाते सदा, कड़वे मीठे बोल।।
कड़वे मीठे बोल, खोल  दे दिल के ताले।
भय लालच कर त्याग, सदा सच कहने वाले।।
मिले जहाँ ये मित्र, हृदय को उनके छु लो।
दुनियां दारी भूल, कभी मत उनको भूलो।।2।।


भूलोगे यदि मित्रता,  पड़ कर के निज स्वार्थ ।
कौन करेगा फिर भला, इस जम में परमार्थ ।।
इस जग में परमार्थ, नहीं यदि होगा भाई।
फिर कैसे ये प्रेम, व्यर्थ होगी कविताई।।
गले लगा कर यार, कहा पर तुम झूलोगे।
किसे रखोगे याद, अगर इनको भूलोगे।।3।।


भूलो को जो भूल कर, गले लगा ले यार।
मित्रों के सँग बैठ कर, तज देता संसार।।
तज देता संसार, बिना जो तनिक विचारे।
ऐसे होते यार, चले सँग यम के द्वारे।।
पा कर ऐसे मित्र, करे मन नभ को छू लो।
मित्र न ऐसे भूल, भले यह दुनियां भूलो।। 4।।


भूलो मत संसार में, है मतलब की प्रीत।
स्वार्थ साध कर त्याग दे, यही जगत की रीत।।
यही जगत की रीत, कोन है साथ किसी के।
जहाँ मिले ऐश्वर्य, सभी हो साथ उसी के।।
भागेंगे दुख छोड़, देख ना इनको फूलो।
मानो मेरी बात, मित्र को ऐसे भूलो।।5।।


भूलो ना ये मित्रता, भूलो ना ये मित्र।
ले जाते सत्मार्ग में, उत्तम रखे चरित्र।।
उत्तम रखे चरित्र, करे तन मन को निर्मल। 
जो जीवन के मूल्य, सिखाते हमको प्रतिपल।।
होते ये अनमोल, हृदय को इनके छू लो।
दुख पीड़ा सन्ताप, और अब इनको भूलो।।6।।


*मथुरा प्रसाद वर्मा*
ग्राम- कोलिहा, जिला - बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़)

Sunday 18 April 2021

दु गीत मया के गावन दे।

दू गीत मया के गावन दे।
 दू गीत मया के गावन दे।

एक गीत यार जवानी के 
जिनगी के प्यार कहानी के।
एक गीत अमर बलिदानी बर।
लहू डबकात जे रवानी बर।
बिरवा मँय बोयें जिनगी भर, 
अब फूल सहीं ममहावन दे।

सब मीत मोर सब सँगवारी।
जावत हावे आरी पारी।
कब मोर बुलावा आ जाही।
कब साँस कहाँ थीरा जाही।
जब बोझ साँस के ढोवत हँव,
मन के मनमीत सुनावन दे।

कतको जाही कतको आही।
कवि अपन पिरा ल गोहराही।
ये दुनिया आनीजानी ये ।
जिनगी के इही कहानी ये।
ये रंगमंच मा आज महुँ ला,
रस घोरन दे बरसावन दे।








Monday 1 March 2021

मुक्तक : मोर अँगरी धर चलव।


 एक दिन वो पार जाबो ये भरोसा कर चलव।
पोठ रख विस्वास मन के छोड़ जम्मो डर चलव।
मँय सुरुज के सारथी बन लड़ जहूँ अँधियार ले,
जे विहिनिया चाहथे वो मोर अँगरी धर चलव।

Wednesday 17 February 2021

अमृत ध्वनि छंद : मोर कराही


मोर कराही कस हृदय, सब बर हे अनुराग।
माढ़े आगी के ऊपर, दबकावत हँव साग।
दबकावत हँव, साग सबे बर, किसम किसम के।
हरदी मिरचा, मरी मसाला, डारँव जमके।
मन के भितरी,पोठ चुरत हे,  साग मिठाही।
कलम ह करछुल, कविता मोरे,मोर कराही।

Wednesday 10 February 2021

छत्तीसगढ़ी गजल : बेंच दे है सब कलम बाजार मा।


कोन लिखथे साँच अब अखबार मा।
बेंच दे हे सब कलम बाजार मा।

नाँव के खातिर मरे सनमान बर।
रेंगथे कीरा सहीं दरबार मा।

साँच बोले के जुलुम होगे हवे।
काट मोरो  घेंच ला तलवार मा।

हाँ तहूँ जी भर कमा ले लूट ले,
तोर मनखे बइठगे सरकार मा।

तँय कहूँ ला सोज रद्दा झन बता, 
जे भटकथे घर बनाथे खार मा।

तँय मसाला डार जे जतका मिले,
नून कमती नइ चलय आचार मा।






ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...