Tuesday 2 June 2015

प्यास


वो चींखने चिल्लाने वाले कौन है ?
कौन है?
कौन है ?

जो भूखे है ?
जो प्यासे है ?
बेघर है?
नंगे है ?
क्या उनके दंगे है ?

अरे नहीं !
उन्हें भला कहा फुर्सत है ?
वो क्यों  चीखेंगे ?
क्यों चिल्लायेंगे?

वो सब तो मौन है।

फिर भला ये कौन है?

ये वो है
जो ख़ास मौको पर आते है
हमारी भूख और प्यास
रोटी और गरीबी को
जो लोग भुनाते है।

ये वही लोग है जो चिल्लाते है
जो हमारी प्यास से
अपनी प्यास बुझाते है।

रोटी और भूख

रोटियां तब भी बिकती थी।
रोटियां अब भी बिकती है।

रोटियां वो भी बेचते थे
रोटियां ये भी बेचते है।

फर्क है बस इतना

कि तब हम रोटियां खरीद नहीं पाते थे।।
अब रोटियां खा नहीं पाते।

क्यू कि
भूख तब भी नहीीं बिकता था
भूख अब भी नही बिकता है।

छडिकाएं

डूबने वाले को इतना सहारा तो है।
पल दो पल साथ तेरे गुजारा तो है।।
कही तो नाचती है मुस्कान की दुल्हन
ओठ मेरा  न सही तुम्हारा तो है।






आजकल

बुझाते हुए दिये भी सितारा लगे है आजकल।।
मझधार भी जाने क्यू किनारा लगे है आजकल।।

फूल हमेशा साथ देते नहीं यह जानकर
काँटों का साथ ही प्यारा लगे है आजकल।।

तुम कुछ सोचो मैं कुछ सोचु  वो सोचे कुछ और
सोचने का ये हुनर नकारा लगे है आजकल।।

घर बनाना चाँद पर कुछ लोग चाहते है मगर
मेरे रोटियां मुझको सबसे न्यारा लगे है आजकल।।

तक़दीर ने मेरा मुझको उस मोड़ पर है ला दिया
तेरे नाम का मीठा जल भी खारा लगे है आज कल ।।

जज्बात समझ लूंगा।


जो तुम्हारे दिल में होंगे, मैं वो जज्बात समझ लूंगा ।।
जो तुम कह भी नहीं पाते मैं वो बात समझ लूंगा ।।

तुम बादल हो चाहो जहाँ   पर बरस लेना
ये पलकें भीग जाएँगी , मैं बरसात समझ लूंगा।।

जिन्हें भी भूख लगाती है रोटी क्यू नहीं मिलती
कोई ये बात समझा है जो मैं ये बात समझ लूंगा ।।

अच्छा है मुझे देखकर तुम निगाहें फेर लेती हो
कही तुम मुस्कुरा दोगी तो मैं सौगात समझ लूंगा ।।

जो रात आये तो मेरी माँ तू मुझको सुला देना;
मैं नादां हु रात को दिन, दिन को रात समझ लूंगा।।

कहीं कोई भी गिर जाये मैं अक्सर दौड़ पड़ता हू
ये ये उंगली कोई भी  पकड़े  मैं तेरा हाथ समझ लूंगा।।

जब तक  दिल करे चलना,फ़िर रास्ता बदल लेना
नसीब में लिखा था यहीं तक तेरा साथ  समझ लूंगा   ।।


छडिकाएं

माली ही खुद अपना चमन बेचने लगे है।
वतन के रखवाले ही वतन बेचने लगे है ।।
आज के इस दौर में मुझे ये मलाल है
कुछ कलमकार भी कलम बेचने लगे है।






ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...