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सखी

लिखूं तुम्हारे लिए सखी मैं,  इस जीवन का अंतिम गान। तुच्छ कवि की महाकल्पना  कर सके जिसपर अभिमान। मन ये चाहे टिस प्रेम कीआज तुम्हारे हृदय में भर दूँ। और अधरों के कंपन को शब्दों से सम्मोहित कर दूँ।  मधुर नहीं है मेरे स्वर पर, मैं छेडू कुछ ऐसी तान। भावनाएं हो जाए पंछी , हृदय मेरा गगन हो जाए । हसी तुम्हारी  खिली रहे जीवन मेरा मधुबन हो जाए। और चाहिए मुझे सखी क्या इससे बड़ा कोई सम्मान।