सुबह का भुला शाम आया है। हो करके बदनाम आया है। सियासत का रोग लगा था, करके सारे काम आया है। आस्तीन में छुरी है पर, मुँह पर अल्ला राम आया है। किस किस को लगाया चुना, बना के झंडुबाम आया है। खादी तन पर पहन के घुमा, होकर नँगा हमाम आया है। वादे बड़े बड़े करता है, कभी किसी के काम आया है? अब के किसको चढ़ाएं सूली पहले मेरा नाम आया है। प्रसाद' रखता जेब में रोटी, क़बर में जा काम आया है। मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.