इतनी समझ तो मुझको भी है यारों दुनियादारी की। दो पैसे के खातिर किसने कब मुझसे मक्कारी की। रुपये पैसे बंगला गाड़ी बात हो हिस्सेदारी की। मेरे हिस्से में फिर रखना दौलत को खुद्दारी की।
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.