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मुक्तक : चलना सीख जाओगे

सुना करते हो क्यों इनकी,  ये कुछ क्या खास करते है। जो कुछ भी कर नहीं सकते,  वही बकवास करते है। लगाते है ये औरों पर  बड़े लाँछन लगाने दो, बुरा खाने से अच्छा है  चलो उपवास करते है। अगर खाने पे मन अटके  कभी उपवास मत करना। कभी छल कर किसी का मन, कहीं भी रास मत करना। तपोवन घर लगेगा जब  सरल मन ये तुम्हारा हो, हो मैला जब भी ये दर्पण,  किसी के पास मत करना। अगर घाटे का सौदा हो,  कभी व्यापार मत करना। नफा नुकसान जब सोचो, तो फिर तुम प्यार मत करना। जहाँ बेमोल बिक जाने से  तुझको भी लगे अच्छा,  ये सौदा कर तो सकते हो  मगर हर बार मत करना। गधे के सींग जैसे हैं  न जाने कब दिखाई दे। गले मिलने चले आते है, जब मतलब दिखाई दे। खुदा महफूज रक्खे तुमको  इन मक्कार यारों से, मेरे बेटे सम्हल कर चल  ये काँटे जब दिखाई दे। सहीं कहते थे बाबूजी,  खुसी औ गम नहीं होंगे। हमेशा एक जैसा कोई भी  मौसम नहीं होंगे। तुझे गिरना सम्हल जाना,  खुदी से सीखना होगा। ये उँगली थामने तेरा  हमेसा हम नहीं होंगे। निकल कर देख लो घर से सम्हलना सीख ...

मुक्तक