छत्तीसगढिया शायरी
1.बहुत अभिमान मैं करथौ, छत्तीसगढ के
माटी मा ।मोर
अंतस जुड़ा जाथे, बटकी भर के बसी मा।ये
माटी नो हाय महतारी ये, एकर मानतुम करवबइला
आन के चरत हे, काबर हमर बारी मा ।
2
मै तोरे नाव लेहुँ, तोरे गीत गा के मर जाहूं ।।
जे तै इनकार कर देबे, त मै कुछु खा के मर जाहुं
।।
अब
तो लगथे ये जी जाही संगी तोर मया मा,
कहूँ इकरार कर लेबे त मै पगला के मर
जाहुं ।।
3
ये कइसे पथरा दिल ले मै ह काबर प्यार कर डारेव ।।
जे
दिल ल टोर के कईथेका अतियाचार कर डारेव ।।
नइ जानिस वो बैरी हा कभू हिरदे के पीरा ला
जेकर
मया मय जिनगी ला मै अपन
ख़्वार कर डारेव।।
4
मोर घर म देवारी के
दिया
दिनरात जलते फेर।।
महूँ
ल देख के कोनो
अभी तक हाथ मलत फेर।।
मैं
तोरे नाव ले ले के
अभी तक
प्यासा बइठे हौ
मोरो
चारो मु़ड़ा घनघोर
बादर
बरसथे फेर।।
5
महू तरसे हव तोरे बर
तहु ल तरसे बर परही
मय
कतका दुरिहा रेंगे हौ
तहूँ ल
सरके बर परही।।
मय
तोरे नाव क चातक
अभी ले
प्यासा बइठे हौ
तड़प
मोर प्यास म होही
त तोला बरसे बर
परही।
6
मोर घर छितका कुरिया अऊ,
तोर
महल अटारी हे ।।
तोर
घर रोज महफिल अऊ,
मोर सुन्ना दुवारी हे
।।
तहु
भर पेट नई खावस,
महु
भर पेट नई खावव
तोर
अब भूख नई लागय,
मोर करा
जुच्छा थारी हे ।।
very nice.
ReplyDeleteabbad badhiya he aap man ke kavita ha..