तुम किरण थी मैं अँधेरा, हो सका कब मेल। खेल कर हर बार हारा, प्यार का ये खेल।। नैन उलझे और सपने , बुन सके हम लोग। आज भी लगता नही ये, था महज संजोग।1। मैं जला जलता रहा हूँ, रात भर अनजान। आप रोटी सेंक अपना, चल दिये श्रीमान।। मैं सहूँगा हर सितम को , मुस्कुराकर यार। आप ने मेरी मुहब्बत, दी बना बाजार।2।
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.