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मुक्तक

कोई कितना भी पुकारे, पाँव पर हिलता नहीं। भीड़ है चारो तरफ पर आदमी मिलता नहीं। आज कल क्या हो गया है, बागबां को दोस्तों, खार है हर साख पर बस, गुल कोई खिलता नहीं।