सूरज निकलता रहा हर दिन
हर दिन लाल होता रहा आकाश
पक्षी चहकते रहे'
हवाएं चलती रही
झूमती रही डालियाँ ।
उठता रहा धुवां
सुलगती रही चिमनियाँ
चीखते रहे भोंपू
दौड़ता रहा सड़क।
मगर क्यों
अब भी अँधेरा है
मेरे गाँव में ?
गाँव की पगडंडीयां
क्यूँ नहीं सिख।पाई रेंगना ?
क्यूँ नहीं जले चूल्हे
अब तक झोपड़ों में ?
उजाला क्यों नहीं आता
आखिर गावों में ?
क्या कभी न आएगा सूरज
गावों में ?
मैं चिंतित हूँ !
कौन ले जाता है सबेरा
छीन कर गावों से ?
मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'
No comments:
Post a Comment