सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, आशाओं से मंजिल गढ़ लो। बटोही चाहे शूल हो पथ में, चाहे आग्नि पथ हो बढ़ लो। नहीं है सम्भव मानव हो कर, नीलकंठ होना विष पी कर। सम्भव पर इतना है साथी, परहित देखें पल भर जी कर। त्याग को आदर्श बनाकर, सार्थकता न हो जीवन की। ढाई इंच मुस्कान बाँट कर, हर सकते हो पीड़ा मन की हाहाकार किस लिए मचा है, कौन रहा है किसे पुकार । क्या रक्खा है इन बातों में, चला जा मांझी तू उस पार।B
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.