Wednesday 4 September 2024

मुक्तक शिक्षक दिवस

शिक्षक दिवस मुक्तक

212*4

चोट बाहर से भीतर सहारा दिया।
जब भवँर में फँसा, तब किनारा दिया, 
दूर मंजिल से   मैं जब भटक था गया, 
आप ने उंगलियों का इशारा दिया।


थक के हारा जो बाधा से डर कर रहा।
जिसने हिम्मत न की वो भी घर पर रहा।
मैं गिरा और उठ कर चला ठौर तक, 
आप का हाथ मेरे जो सर पर रहा।

रोज उंगली पकड़ कर चलाया मुझे।
गिर गया चोंट खा कर, उठाया मुझे।
दौड़ता क्या कभी, हार कर हौसला,
जीतना आप ही ने सिखाया मुझे।

ना नयन झुक सके ना ये सर ही झुका।
कारवां जो चला फिर कभी ना रुका।
राह रोके बहुत दुश्मनो ने मगर,
तीर सध कर निशाने से फिर ना चुका।

देख ले तू भी सपना कहाँ पायेगा।
हौसला तोड़ कर, मेरा ले जाएगा।
ये सजर मेरे भीतर लगा वो गया,
डाल काटो नया साख फिर आएगा।




Saturday 20 July 2024

एक मुक्तक

सफर में बस चुनौती हो, न कोई भी बहाने हो।
गगन के पार जाने तक उड़ाने ही उड़ाने हो।
नए पँखो को मेरे बस नया तुम हौसला देना।
शजर हो जो छितिज के पार मेरे आशियाने हो।

Thursday 6 June 2024

मुक्तक छत्तीसगढ़ी

पहिली जाल बिछाही पाछू, सुग्घर  चारा डार दिही।
तोरे राग म गाना गाही, मया के मंतर मार दिही।
झन परबे लालच मा पंछी,देख शिकारी चाल समझ;
फाँदा खेले हावय जे हा,अवसर पा  के मार दिही।

चारा के लालच देखाही, फांदा खेल फँदाही रे।
झन बन जांगर चोट्टा बैरी,इक दिन जान ह जाही रे।
रोज कमा के खाथन सँगी,स्वाभिमान से जीथन जी,
माथ नवा जे तरुवा चाँटय,जूट्ठा पतरी पाही रे।

चारा के लालच देखाही, फांदा खेल फँदाही रे।
देख चिरइ तँय लालच झन कर,तोला मार के खाही रे।
कोन शिकारी हरय समझ ले,दाना कइसे फेके हे,
जे हा जतका लालच करही,पहिली उही फँदाही रे।

बन के जे हा जाँगर चोट्टा, फ़ोकट पा के खाही रे।
जे जतका लालच मा परहीपहिली उही छँदाही रे।
देख न बैरी आज शिकारीजंगल के रखवार बने,
ओसरी पारी अवसर पा केसबला मार के खाही रे।

Wednesday 29 May 2024

मुक्तक : चलना सीख जाओगे

सुना करते हो क्यों इनकी, 

ये कुछ क्या खास करते है।

जो कुछ भी कर नहीं सकते, 

वही बकवास करते है।

लगाते है ये औरों पर 

बड़े लाँछन लगाने दो,

बुरा खाने से अच्छा है

 चलो उपवास करते है।


अगर खाने पे मन अटके 

कभी उपवास मत करना।

कभी छल कर किसी का मन,

कहीं भी रास मत करना।

तपोवन घर लगेगा जब 

सरल मन ये तुम्हारा हो,

हो मैला जब भी ये दर्पण, 

किसी के पास मत करना।


अगर घाटे का सौदा हो, 

कभी व्यापार मत करना।

नफा नुकसान जब सोचो,

तो फिर तुम प्यार मत करना।

जहाँ बेमोल बिक जाने से 

तुझको भी लगे अच्छा, 

ये सौदा कर तो सकते हो 

मगर हर बार मत करना।


गधे के सींग जैसे हैं 

न जाने कब दिखाई दे।

गले मिलने चले आते है,

जब मतलब दिखाई दे।

खुदा महफूज रक्खे तुमको 

इन मक्कार यारों से,

मेरे बेटे सम्हल कर चल 

ये काँटे जब दिखाई दे।


सहीं कहते थे बाबूजी, 

खुसी औ गम नहीं होंगे।

हमेशा एक जैसा कोई भी 

मौसम नहीं होंगे।

तुझे गिरना सम्हल जाना, 

खुदी से सीखना होगा।

ये उँगली थामने तेरा 

हमेसा हम नहीं होंगे।


निकल कर देख लो घर से

सम्हलना सीख जाओगे।

गिरोगे और उठोगे जब तो

चलना सीख जाओगे।

भले रोके कोई भी राह 

तुम परवाह मत करना;

यूँ ही चलते रहो आगे 

निकलना सीख जाओगे।


चढ़ोगे जब बुलन्दी पर, 

तभी ये फिर के आएंगी।

मुसीबत की घटा जीवन में 

अक्सर घिर के आएंगी।

कभी गिरने के डर से पाँव को

मत लड़खड़ाने दो,

डरो मत हौसला रक्खो

 के हिम्मत गिर के आएगी।


बड़ी जो कामयाबी है, 

मुसीबत साथ लाती है।

बुलन्दी पर पहुँच अक्सर 

कदम भी लड़खड़ाती है।

मेरे बच्चे सम्हलकर चल 

नहीं अब हौसला टूटे,

कि हिम्मत से मुसीबत की 

कमर भी टूट जाती है।


सभी रोकेंगे तेरी राह 

बाधाएं डराएंगे।

ये गढ्ढे और पत्थर ही

 तुम्हे चलना सिखाएंगे ।

नहीं रुकना किसी भी चोट से

 डर कर मेरे बच्चे,

गिरोगे चोट खाकर जब 

अकल के दाँत आएंगे।