क्या क्या करें क्या क्या न करें । हमने उनपे सब छोड़ा है जो करना है वो खुदा करे । बचपन की उखड़ती सांसे है। ममता की बेबस आँखें है। वो फिर भी महल बनायेंगे; कोई मरता है तो मरा करे । यहाँ ख़ून से आटा सनती है। तब जाकर रोटी बनती है। हर दाने पर पहरे बैठे है; जिन्हें भूख लगे वो दुवा करे। जब जुल्म की आंधी चलती है। इन्साफ कुचल दी जाती है। यहाँ न्याय गवाही मांगेगी; अन्याय भले ही हुआ करे। यहाँ सच हमेसा हरता है। और झूठ ही बजी मरता है। "प्रसाद"मगर सच बोलेगा; कोई सुने या अनसुना करे।। - मथुरा प्रसाद वर्मा'प्रसाद'
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.