Tuesday 22 October 2013

सर्दी बड़ी बेदर्दी

नाक आखिर नाक है;
बहे नहीं तो करे क्या?
रुमाल  गन्दा न  करे;
तो कोई मरे क्या?
आजाये आनी अगर है;
यूँ तड़पाती है क्यों?
एक मीठा दर्द बनकर
सर पे चढ़ जाती है क्यों?
ये जो अपनों छिक है
ये बड़ी ढी ठ है।
नाक पर आ कर अगर
न आए तो करे क्या?
ये एक ऐसा मर्ज है;
सच बड़ा  ख़ुदगर्ज है।
नाक पे है नकचड़ी ।
सिर का सिरदर्द है।
न चैन दे पल भर
न रात को नीद दे
खर्राटे सुन क्र रात भर
कोई न डरे तो डरे क्या?

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