पहिली जाल बिछाही पाछू, सुग्घर चारा डार दिही। तोरे राग म गाना गाही, मया के मंतर मार दिही। झन परबे लालच मा पंछी,देख शिकारी चाल समझ; फाँदा खेले हावय जे हा,अवसर पा के मार दिही। चारा के लालच देखाही, फांदा खेल फँदाही रे। झन बन जांगर चोट्टा बैरी,इक दिन जान ह जाही रे। रोज कमा के खाथन सँगी,स्वाभिमान से जीथन जी, माथ नवा जे तरुवा चाँटय,जूट्ठा पतरी पाही रे। चारा के लालच देखाही, फांदा खेल फँदाही रे। देख चिरइ तँय लालच झन कर,तोला मार के खाही रे। कोन शिकारी हरय समझ ले,दाना कइसे फेके हे, जे हा जतका लालच करही,पहिली उही फँदाही रे। बन के जे हा जाँगर चोट्टा, फ़ोकट पा के खाही रे। जे जतका लालच मा परहीपहिली उही छँदाही रे। देख न बैरी आज शिकारीजंगल के रखवार बने, ओसरी पारी अवसर पा केसबला मार के खाही रे।
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