सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मुक्तक

मुहब्बत एक फैशन है ,आजकल ज़माने में।
नही दिल देखता कोई , लगे है तनको सजाने में।।
बहुत आसान है पहली नज़र में दिल दे देना;
पसीने छूट जाते हैं मगर रिश्ते निभाने में।

कभी करता है दिल मेरा, कि मैं देवदास हो जाता ।।
न पड़ता तेरे चक्कर में, तो कुछ ख़ास हो जाता ।।
अगर होते सिलेबस में, तुम्हारे हुस्न के चर्चे;
ये मुमकिन है परीक्षा में, मैं भी पास हो जाता ।।


हर एक हार किसी जीत की शुरुवात  होती है ।।
हर सुबह से पहले एक लम्बी रात होती है ।।
जो हिम्मत हारते नहीं है गिर-गिर के राहों में;
मुकद्दर में उन्ही के जीत की सौगात होती है ।।

माली ही खुद अपना चमन बेचने लगे है।
वतन के रखवाले ही वतन बेचने लगे है ।।
आज के इस दौर में मुझे ये मलाल है
कुछ कलमकार भी कलम बेचने लगे है।



















टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मोर छत्तीसगढ़ी गीत: छत्तीसगढिया शायरी

  छत्तीसगढिया शायरी   1 . बहुत अभिमान मैं करथौ,   छत्तीसगढ के माटी मा । मोर अंतस जुड़ा जाथे,  बटकी भर के बसी मा। ये माटी नो हाय महतारी ये,   एकर मानतुम करव बइला आन के चरत हे,   काबर    हमर  बारी मा  ।   2 मै   तोरे  नाव लेहुँ,  तोरे गीत   गा के मर   जाहूं ।।  जे तै इनकार कर देबे,  त   मै   कुछु खा के मर जाहुं ।। अब तो लगथे ये जी जाही  संगी  तोर    मया मा, कहूँ इकरार कर लेबे    त मै  पगला के मर जाहुं ।।                       3 ये कइसे पथरा दिल ले मै ह  काबर प्यार कर डारेव ।। जे दिल ल टोर के कईथे का अतियाचार कर डारेव ।। नइ  जानिस वो बैरी हा  कभू हिरदे के पीरा ला  जेकर मया मय जिनगी ला  मै  अपन ख़्वार कर डारेव।।               ...

हर जोर जुलम के टक्कर मैं; संघर्ष हमारा नारा है!

अंधियारों ने बहुत सताया नया सबेरा लाना है!!  गावं -गावं और घर-घर जाकर दीप नए जलना है !! जब-जब अत्याचार बढे है ;हमने यही पुकारा है !  हर जोर जुलम के टक्कर मैं; संघर्ष हमारा नारा है!  हम भारत  नन्हे सिपाही ;माँ की लाज बचायेंगे बचायेंगे !  जिस दुश्मन ने आँख उठाई हम उनसे टकरायेंगे !  आन हमें भारत माता का प्राणों से भी  प्यारा है !!  हर जोर जुल्म के  न मंदिर न मस्जिद न गिरिजा  घर गुरुद्वार हो !  ये चाहत है मानवता की ; आपस में भाई चारा हो !  मिटायें आओ हर शोषण  को ; यह संकल्प हमारा है !!  हर जोर जुल्म के  शांति त्याग और खुशहाली का प्रीतिक प्यारा तिरंगा  है ! आन हमारा शान हमारा जान हमारा तिरंगा है ! झुकाना इसका मंजूर नहीं ;मर जाना हमें गवारा है !!  हर जोर जुल्म के 

मुक्तक छत्तीसगढ़ी

  पहिली जाल बिछाही पाछू, सुग्घर चारा डार दिही। तोरे राग म गाना गाही, मया के मंतर मार दिही। झन परबे लालच मा पंछी,देख शिकारी चाल समझ; फाँदा खेले हावय जे हा,अवसर पा के मार दिही। चारा के लालच देखाही, फांदा खेल फँदाही रे। झन बन जांगर चोट्टा बैरी,इक दिन जान ह जाही रे। रोज कमा के खाथन सँगी,स्वाभिमान से जीथन जी, माथ नवा जे तरुवा चाँटय,जूट्ठा पतरी पाही रे। चारा के लालच देखाही, फांदा खेल फँदाही रे। देख चिरइ तँय लालच झन कर,तोला मार के खाही रे। कोन शिकारी हरय समझ ले,दाना कइसे फेके हे, जे हा जतका लालच करही,पहिली उही फँदाही रे। बन के जे हा जाँगर चोट्टा, फ़ोकट पा के खाही रे। जे जतका लालच मा परहीपहिली उही छँदाही रे। देख न बैरी आज शिकारीजंगल के रखवार बने, ओसरी पारी अवसर पा केसबला मार के खाही रे।