उनके चाहत के सपने सजाएँ हूँ अब तक !उनके यादों को सिने में बसाये हूँ अब तक !
वो मासूम चेहरा, वो झील सी गहरी आँखें ;वो उनका मुस्काना ,वो उनका शर्माना,भोली सूरत को आँखों में छुपाये हूँ अब तक !
छुप-छुप के हमफिर हथेली से अपना सहारा छुपाना ;कुछ भी तो नहीं भुला पाए हूँ अब तक !
वो जागी जागी, रातें वो तेरी बातें ;वो जुदाई के दिन , और वो मुलाकातें ;उन्ही यादों में कहाँ , सो पाए हूँ अब तक !
प्यासी-प्यासी सी मेरी भीगी निगाहें ;ताकती रहती है तेरी वो सुनी राहें ; तेरी राहों में पलके बिछाएं हूँ अब तक !
छत्तीसगढिया शायरी 1 . बहुत अभिमान मैं करथौ, छत्तीसगढ के माटी मा । मोर अंतस जुड़ा जाथे, बटकी भर के बसी मा। ये माटी नो हाय महतारी ये, एकर मानतुम करव बइला आन के चरत हे, काबर हमर बारी मा । 2 मै तोरे नाव लेहुँ, तोरे गीत गा के मर जाहूं ।। जे तै इनकार कर देबे, त मै कुछु खा के मर जाहुं ।। अब तो लगथे ये जी जाही संगी तोर मया मा, कहूँ इकरार कर लेबे त मै पगला के मर जाहुं ।। 3 ये कइसे पथरा दिल ले मै ह काबर प्यार कर डारेव ।। जे दिल ल टोर के कईथे का अतियाचार कर डारेव ।। नइ जानिस वो बैरी हा कभू हिरदे के पीरा ला जेकर मया मय जिनगी ला मै अपन ख़्वार कर डारेव।। ...
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