सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अक्टूबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रसाद के पद : सखी री, जूते उनको मार

सखी री, जूते उनको मार। जो कर के वादा फिर मुकरे, गिन गिन के दे चार। लोकतंत्र को बना खिलौना, खेले बारम्बार। तन के उजले मन के काले, करते है मनुहार। पद-पैसे पर मोहित होकर, बिक जाते बाजार। लुटे निर्धन के धन को जो, और लाज को नार। सातो पुरखे तर जाएगे,  ऐसे कर बौछार। नियम नीति धर झोली में, दफ्तर में व्यापार। रिश्वत के ऐसे पंडो के, सारे भूत उतार। भ्रष्टाचारी जो अधिकारी, बने देश पर भार। नेताओ से गठबंधन कर,  बैठे है दरबार। भोली भाली भूखी प्यासी, जनता है लाचार। शासक हो गए अँधे बहरे, कौन सुने चीत्कार।

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल - रोज सुध कर के जेकर छाती जरे

  2122  2122   212 रोज सुध कर के जेकर छाती जरे। नइ फिरय वो फेर अब बिनती करे। कोन बन मा जा भटक गे राह ला  रेंगना आइस जिखर अँगरी धरे। तँय लगा बिरवा मया के चल दिये, देख आ के वो कतक फूले फरे । हे अँजोरी घर म तोरे नाँव ले,  जोत अँगना मा बने रोजे बरे । जब गिरे के बाद कोनो थामथे जान लेथव हाथ वो तोरे हरे।

लेस दे जे घर अपन वो मोर सँग मा आय।

देख के रद्दा म काँटा मँय मढाथव  पाँव। अउ दही के भोरहा कपसा घलो ला खाँव। झन कहूँ बिजहा मया के बोंय के पछताय। लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय। फूल पर के भाग काँटा मोर हे तकदीर । मोर मन ला भाय सिरतों ये मया के पीर। रोय भीतर फेर बाहिर हाँस के मुस्काय। लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय। घाम सह के प्यास रह के जे नही अइलाय। जे भरोसा राम के तुलसी सहीं हरियाय। मोर बिरवा हा मया के रातदिन ममहाय।  लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय।

लेस दे जे घर अपन वो मोर सँग मा आय।

देख के रद्दा म काँटा मँय मढाथव  पाँव। अउ दही के भोरहा कपसा घलो ला खाँव। झन कहूँ बिजहा मया के बोंय के पछताय। लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय। फूल पर के भाग काँटा मोर हे तकदीर । मोर मन ला भाय सिरतों ये मया के पीर। रोय भीतर फेर बाहिर हाँस के मुस्काय। लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय घाम सह के प्यास रह के जे नही अइलाय। जे भरोसा राम के तुलसी सहीं हरियाय। मोर बिरवा हा मया के रातदिन ममहाय।  लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय।