Tuesday 6 October 2020

लेस दे जे घर अपन वो मोर सँग मा आय।

देख के रद्दा म काँटा मँय मढाथव  पाँव।
अउ दही के भोरहा कपसा घलो ला खाँव।
झन कहूँ बिजहा मया के बोंय के पछताय।
लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय।

फूल पर के भाग काँटा मोर हे तकदीर ।
मोर मन ला भाय सिरतों ये मया के पीर।
रोय भीतर फेर बाहिर हाँस के मुस्काय।
लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय

घाम सह के प्यास रह के जे नही अइलाय।
जे भरोसा राम के तुलसी सहीं हरियाय।
मोर बिरवा हा मया के रातदिन ममहाय। 
लेस दे जे  घर अपन वो मोर सँग मा आय।

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