मोर कराही कस हृदय, सब बर हे अनुराग। माढ़े आगी के ऊपर, दबकावत हँव साग। दबकावत हँव, साग सबे बर, किसम किसम के। हरदी मिरचा, मरी मसाला, डारँव जमके। मन के भितरी,पोठ चुरत हे, साग मिठाही। कलम ह करछुल, कविता मोरे,मोर कराही।
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.