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अमृत ध्वनि छंद : मोर कराही

मोर कराही कस हृदय, सब बर हे अनुराग। माढ़े आगी के ऊपर, दबकावत हँव साग। दबकावत हँव, साग सबे बर, किसम किसम के। हरदी मिरचा, मरी मसाला, डारँव जमके। मन के भितरी,पोठ चुरत हे,  साग मिठाही। कलम ह करछुल, कविता मोरे,मोर कराही।

छत्तीसगढ़ी गजल : बेंच दे है सब कलम बाजार मा।

कोन लिखथे साँच अब अखबार मा। बेंच दे हे सब कलम बाजार मा। नाँव के खातिर मरे सनमान बर। रेंगथे कीरा सहीं दरबार मा। साँच बोले के जुलुम होगे हवे। काट मोरो  घेंच ला तलवार मा। हाँ तहूँ जी भर कमा ले लूट ले, तोर मनखे बइठगे सरकार मा। तँय कहूँ ला सोज रद्दा झन बता,  जे भटकथे घर बनाथे खार मा। तँय मसाला डार जे जतका मिले, नून कमती नइ चलय आचार मा।