कवि मथुरा प्रसाद वर्मा
Wednesday, 17 February 2021
अमृत ध्वनि छंद : मोर कराही
मोर कराही कस हृदय, सब बर हे अनुराग।
माढ़े आगी के ऊपर, दबकावत हँव साग।
दबकावत हँव, साग सबे बर, किसम किसम के।
हरदी मिरचा, मरी मसाला, डारँव जमके।
मन के भितरी,पोठ चुरत हे, साग मिठाही।
कलम ह करछुल, कविता मोरे,मोर कराही।
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