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मुक्तक

लगा कर आग लोगों ने भले सपने जला डाले। मुझे है हौसला देते ये मेरे पाँव के छाले। बुरी है आह बच कर चल किसी की बद्दुआओं से, कभी खुद टूट जाएंगे, घरों को तोड़ने वाले।

महरण घनाक्षरी

जिसने भी ऊगली थमाई ताकि खड़े होके, निज पाँव चल सके करे निज काम जी। गरदन उनकी मरोड़ने बढ़ाए हाथ, करते हैं पग पग उन्हें बदनाम जी। ऐसे परबुधियों को नर्क भी नसीब न हो, करते है खुद की ही जिंदगी हराम जी। जिस थाली खाई उस थाली को ही छेदते है, ऐसे लोग भूखे मर जाये मेरे राम जी।

मुक्तक : घरों को तोड़ने वाले।

लगा कर आग लोगों ने भले सपने जला डाले। मुझे है हौसला देते ये मेरे पाँव के छाले। बुरी है आह बच कर चल किसी की बद्दुआओं से, कभी खुद टूट जाएंगे, घरों को तोड़ने वाले।