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अच्छा नहीं लगता।।

तेरे ख्यालों में इस कदर खोया रहता हूँ; कि तू भी आये तो अच्छा नहीं लगता।। मेरा ख्वाब है मुझे देख तो लेने दे; कोई जगाये तो अच्छा नहीं लगता।। अब अँधेरे कि आदत हो गई मेरे घर को; कोई दीप जलाये तो अच्छा नहीं लगता।। तू मनाता है इसलिए तो रूठ जाता हूँ; कोई और मनाये तो अच्छा नहीं लगता।। ये माना मेरे गीत है फिर भी बेवक्त कोई गाये तो अच्छा नहीं लगता।। वो हँसते है बहुत मेरे आशुओं पर प्रसाद' मुस्कुराये तो अच्छा नहीं लगता ।।

करती है सरकार भैया।।

करती है सरकार भईया।। आजकल व्यापार भईया।। इन्हें तो बस वोट चाहिए। देश का बंठाधार भईया।। गुंडे मवाली छुटभैयों से संसद है लाचार भईया। किसे पड़ी है सच बोलेगा कौन सहेगा मार भईया। आपस में सब तने पड़े है खिची हुई  तलवार भईया। प्यार करेगा छूप छुप के गर पकड़ा गया बलात्कार भैया।

धीरे धीरे

उठने लगे है कदम धीरे धिरे। ये कहां जा रहे है हम धीरे धीरे। नफरतें बढ़ी है मगर क्यों दिलों में मुहब्बत हुई है कम धीरे धीरे।। हमने सहा है हम ही सहेंगे सनम तू करले सितम धीरे धीरे।। मेरे बिश्वास को किया तार तार, आज खा रहे है कसम धीरे धीरे।। वो जब मुस्कुराये तुम ये समझाना निकलने लगा है मेरे दम धीरे धीरे।। प्रसाद' ख्याल रखना वो  दर्द लगायेगे फिर मरहम धीरे धीरे।। यही जिन्दगी है तो मेरे मौत मुझपे करता नहीं क्यों रहम धीरे धीरे।।

क्या क्या करें ?

क्या क्या करें क्या क्या न करें । हमने उनपे सब छोड़ा है जो करना है वो खुदा करे । बचपन की उखड़ती सांसे है। ममता की बेबस आँखें है। वो फिर भी महल बनायेंगे; कोई मरता है तो मरा करे । यहाँ ख़ून से आटा सनती है। तब जाकर रोटी बनती है। हर दाने पर पहरे बैठे है; जिन्हें भूख लगे वो दुवा करे। जब जुल्म की आंधी चलती है। इन्साफ कुचल दी जाती है। यहाँ न्याय गवाही मांगेगी; अन्याय भले ही हुआ करे। यहाँ सच हमेसा हरता है। और झूठ ही बजी मरता है। "प्रसाद"मगर सच बोलेगा; कोई सुने या अनसुना करे।। - मथुरा प्रसाद वर्मा'प्रसाद'

सर्दी बड़ी बेदर्दी

नाक आखिर नाक है; बहे नहीं तो करे क्या? रुमाल  गन्दा न  करे; तो कोई मरे क्या? आजाये आनी अगर है; यूँ तड़पाती है क्यों? एक मीठा दर्द बनकर सर पे चढ़ जाती है क्यों? ये जो अपनों छिक है ये बड़ी ढी ठ है। नाक पर आ कर अगर न आए तो करे क्या? ये एक ऐसा मर्ज है; सच बड़ा  ख़ुदगर्ज है। नाक पे है नकचड़ी । सिर का सिरदर्द है। न चैन दे पल भर न रात को नीद दे खर्राटे सुन क्र रात भर कोई न डरे तो डरे क्या?

प्यार मुहब्बत इश्क्

गरीब है यारों रो भी नहीं सकते ; लोग रोने का दूसरा मतलब निकाल लेंगे । मै मुहब्बत में हारा हु रोना चाहता हु लोग भूखा समझ कर सिक्कउछाल देंगे।। ये दुनिया है दोस्त पहले रुलायेंगे आपको आंशु पोछने को फिर कोई रुमाल देंगे ।। ये प्यार मुहब्बत इश्क है या की दुकानदारी । पहले ग्राहक देखेंग फिर तोल कर माल देंगे ।।

नेता के दोहे।

1 नेता करे न चाकरी, चमचा करे न काम। दास मथुरा जी कह गए, जीवन हुआ हराम।। 2 नेता जी कुरसी राखिए, तन अपने चिपकाय । सकल  देश को डारिये, बेच बेच के खाय ।। 3 पल भर में ऊँचा उड़े, पलभर में गिर जाय।। बेसरम जैसे लोग ये , मोल मिले बिक जाय।। 4 नेता ऐसा चाहिए , नमक देश का खाए। देश हित में जीवन हो,देशहीत मिट जाए ।। 5 मित्र मेरे इस दौर में,सोच समझ  के वोट। बैपारी  नेता बने ,बाँट रहे हैं नोट।। 6 नेता देखन मैं गया, नेता न मिला कोय। रचते अलग स्वांग है, अभिनेता सब कोय।। 7 अपनी अपनी रोटियां, सेक सेक के खाय ।। अब जनता हैं सोचता, मेरा  कौन उपाय।।

मुझको जला देता है

वो थोडी सी चिंगारी लगा देता है ।। फि‍र धिरे-धिरे उसको हवा देता है ।। मैं गुगवाता हू सुलगता हू धधक उठता हू वो इस तरह से मुझको जला देता है ।। सेक लेता है अपने मतलब की रोटी फि‍र पानी डाल कर मुझको बुझा देता है ।। झुठ कोई भी बोले कितनी भी अदा से वक्‍त हक‍िकत से परदा हटा देता है ।।   कोई कि‍तना भी चाहे मगर वक्‍त आने पर वो अपनी औकात सबको द‍िखा देता है ।। मैं उसकी नि‍गाहों में चढ. कर भी क्‍या करू वो अपनी नि गाहों में ख्‍ाुद को गि‍रा देता है ।। प्रसाद मेरी रोटी को रखना सम्‍हाल कर भुख हर आदमी को रूला देता है ।।          मथुराप्रसाद वर्मा प्रसाद  

सच होंगे कभी सपने भी हमारे देखना ।।

चमकेंगी किसी दिन, ये सितारे देखना। सच होंगे कभी सपने भी हमारे देखना। देखना उनको मेरा ,  इस तरह देखना , किसी डुबते का जैसे कि किनारे देखना। जब तुमको ठुकरा देगा कोई तुम्हारे जैसा काम आयेंगे हम ही तुम्हारे देखना।। फांकाकशी  देती है बड़ी सकूँ भी जिंदगी में, कभी बनकर मेरी तरह बंजारे देखना। मुझे जब भी देखा तुमने मेरे ऐब ही देखा एक सितम है आधे नज़ारे देखना।। उनकी आरजू न कर  तेरे जो न हो सके , छोड़ दो  ' प्रसाद ' दिन में तारे देखना। - मथुरा प्रसाद वर्मा " प्रसाद http://sivprasadsajag.blogspot.in/