Wednesday 18 November 2015

जीवन

जीवन

जीवन क्या सिर्फ इसलिए है
कि चाहे जैसे भी हो जिया जाये ।
इस हलाहल को पीना ही है तो
क्यों न मुस्कुरा कर पिया जाये।

कोई लक्षय नही पथ ही पथ है
और उनपर चलना सिर्फ चलना है।
सुविधाओ का बाट जोहते
आखिर कब तक हाथ मलना है।

संघर्षों से जी चुराते हुए
समझौते और कितने करने होंगे।
पल भर और जीने के लिए
कितनी बार और मरने होंगे।

कितना जी पता है मानव
जीवन को जीवन के जैसे।
साँसे हो गई है महंगी और
जीवन मुट्ठी के खोटे पैसे।

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