Wednesday 18 November 2015

जीवन के सपने

मैंने चाहा था कभी
जीवन के बेरंग कैनवास पर
हसिन सपनो से रंग देना।

मैं उम्रभर भागता रहा
उन्ही सपनो के पीछे।
तलाशता रहा दुनियाँ भर के रंग
ताकि जीवन हो सके रंगीन
सपनों की तरह।

किन्तु इस प्रयास में
न जाने कब ?
न जाने कैसे ?
जीवन हो गया बदरंग।
कैसे बिखर गए सपने
कैसे की बेवफाई
बेहया रंगों ने।

कितना अच्छा था मेरा जीवन
जन बेरंग था।
कम से कम
एक उम्मीद तो थी
रंग बिरंगे सपनो से
रंगे जाने की।

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