सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कुण्डलिया : मित्रता



भूलो ना बन कृष्ण तुम, सखा सुदामा दीन।
 मित्र नहीं  कोई बड़ा, होय न कोई हीन।।
होय न कोई हीन, मित्रता करे बराबर।
तन मन होते एक, मित्र को गले लगाकर।।
राज पाठ का मोह, पाय सुग्रीव न झूलो।
अपनालो बन राम, मित्र को कभी न भूलो।।1।।



भूलो मत है मित्रता, इस जग में अनमोल।
मित्रों के भाते सदा, कड़वे मीठे बोल।।
कड़वे मीठे बोल, खोल  दे दिल के ताले।
भय लालच कर त्याग, सदा सच कहने वाले।।
मिले जहाँ ये मित्र, हृदय को उनके छु लो।
दुनियां दारी भूल, कभी मत उनको भूलो।।2।।


भूलोगे यदि मित्रता,  पड़ कर के निज स्वार्थ ।
कौन करेगा फिर भला, इस जम में परमार्थ ।।
इस जग में परमार्थ, नहीं यदि होगा भाई।
फिर कैसे ये प्रेम, व्यर्थ होगी कविताई।।
गले लगा कर यार, कहा पर तुम झूलोगे।
किसे रखोगे याद, अगर इनको भूलोगे।।3।।


भूलो को जो भूल कर, गले लगा ले यार।
मित्रों के सँग बैठ कर, तज देता संसार।।
तज देता संसार, बिना जो तनिक विचारे।
ऐसे होते यार, चले सँग यम के द्वारे।।
पा कर ऐसे मित्र, करे मन नभ को छू लो।
मित्र न ऐसे भूल, भले यह दुनियां भूलो।। 4।।


भूलो मत संसार में, है मतलब की प्रीत।
स्वार्थ साध कर त्याग दे, यही जगत की रीत।।
यही जगत की रीत, कोन है साथ किसी के।
जहाँ मिले ऐश्वर्य, सभी हो साथ उसी के।।
भागेंगे दुख छोड़, देख ना इनको फूलो।
मानो मेरी बात, मित्र को ऐसे भूलो।।5।।


भूलो ना ये मित्रता, भूलो ना ये मित्र।
ले जाते सत्मार्ग में, उत्तम रखे चरित्र।।
उत्तम रखे चरित्र, करे तन मन को निर्मल। 
जो जीवन के मूल्य, सिखाते हमको प्रतिपल।।
होते ये अनमोल, हृदय को इनके छू लो।
दुख पीड़ा सन्ताप, और अब इनको भूलो।।6।।


*मथुरा प्रसाद वर्मा*
ग्राम- कोलिहा, जिला - बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मोर छत्तीसगढ़ी गीत: छत्तीसगढिया शायरी

  छत्तीसगढिया शायरी   1 . बहुत अभिमान मैं करथौ,   छत्तीसगढ के माटी मा । मोर अंतस जुड़ा जाथे,  बटकी भर के बसी मा। ये माटी नो हाय महतारी ये,   एकर मानतुम करव बइला आन के चरत हे,   काबर    हमर  बारी मा  ।   2 मै   तोरे  नाव लेहुँ,  तोरे गीत   गा के मर   जाहूं ।।  जे तै इनकार कर देबे,  त   मै   कुछु खा के मर जाहुं ।। अब तो लगथे ये जी जाही  संगी  तोर    मया मा, कहूँ इकरार कर लेबे    त मै  पगला के मर जाहुं ।।                       3 ये कइसे पथरा दिल ले मै ह  काबर प्यार कर डारेव ।। जे दिल ल टोर के कईथे का अतियाचार कर डारेव ।। नइ  जानिस वो बैरी हा  कभू हिरदे के पीरा ला  जेकर मया मय जिनगी ला  मै  अपन ख़्वार कर डारेव।।               ...

हर जोर जुलम के टक्कर मैं; संघर्ष हमारा नारा है!

अंधियारों ने बहुत सताया नया सबेरा लाना है!!  गावं -गावं और घर-घर जाकर दीप नए जलना है !! जब-जब अत्याचार बढे है ;हमने यही पुकारा है !  हर जोर जुलम के टक्कर मैं; संघर्ष हमारा नारा है!  हम भारत  नन्हे सिपाही ;माँ की लाज बचायेंगे बचायेंगे !  जिस दुश्मन ने आँख उठाई हम उनसे टकरायेंगे !  आन हमें भारत माता का प्राणों से भी  प्यारा है !!  हर जोर जुल्म के  न मंदिर न मस्जिद न गिरिजा  घर गुरुद्वार हो !  ये चाहत है मानवता की ; आपस में भाई चारा हो !  मिटायें आओ हर शोषण  को ; यह संकल्प हमारा है !!  हर जोर जुल्म के  शांति त्याग और खुशहाली का प्रीतिक प्यारा तिरंगा  है ! आन हमारा शान हमारा जान हमारा तिरंगा है ! झुकाना इसका मंजूर नहीं ;मर जाना हमें गवारा है !!  हर जोर जुल्म के 

मुक्तक छत्तीसगढ़ी

  पहिली जाल बिछाही पाछू, सुग्घर चारा डार दिही। तोरे राग म गाना गाही, मया के मंतर मार दिही। झन परबे लालच मा पंछी,देख शिकारी चाल समझ; फाँदा खेले हावय जे हा,अवसर पा के मार दिही। चारा के लालच देखाही, फांदा खेल फँदाही रे। झन बन जांगर चोट्टा बैरी,इक दिन जान ह जाही रे। रोज कमा के खाथन सँगी,स्वाभिमान से जीथन जी, माथ नवा जे तरुवा चाँटय,जूट्ठा पतरी पाही रे। चारा के लालच देखाही, फांदा खेल फँदाही रे। देख चिरइ तँय लालच झन कर,तोला मार के खाही रे। कोन शिकारी हरय समझ ले,दाना कइसे फेके हे, जे हा जतका लालच करही,पहिली उही फँदाही रे। बन के जे हा जाँगर चोट्टा, फ़ोकट पा के खाही रे। जे जतका लालच मा परहीपहिली उही छँदाही रे। देख न बैरी आज शिकारीजंगल के रखवार बने, ओसरी पारी अवसर पा केसबला मार के खाही रे।