Sunday 26 September 2021

कुण्डलिया : मित्रता



भूलो ना बन कृष्ण तुम, सखा सुदामा दीन।
 मित्र नहीं  कोई बड़ा, होय न कोई हीन।।
होय न कोई हीन, मित्रता करे बराबर।
तन मन होते एक, मित्र को गले लगाकर।।
राज पाठ का मोह, पाय सुग्रीव न झूलो।
अपनालो बन राम, मित्र को कभी न भूलो।।1।।



भूलो मत है मित्रता, इस जग में अनमोल।
मित्रों के भाते सदा, कड़वे मीठे बोल।।
कड़वे मीठे बोल, खोल  दे दिल के ताले।
भय लालच कर त्याग, सदा सच कहने वाले।।
मिले जहाँ ये मित्र, हृदय को उनके छु लो।
दुनियां दारी भूल, कभी मत उनको भूलो।।2।।


भूलोगे यदि मित्रता,  पड़ कर के निज स्वार्थ ।
कौन करेगा फिर भला, इस जम में परमार्थ ।।
इस जग में परमार्थ, नहीं यदि होगा भाई।
फिर कैसे ये प्रेम, व्यर्थ होगी कविताई।।
गले लगा कर यार, कहा पर तुम झूलोगे।
किसे रखोगे याद, अगर इनको भूलोगे।।3।।


भूलो को जो भूल कर, गले लगा ले यार।
मित्रों के सँग बैठ कर, तज देता संसार।।
तज देता संसार, बिना जो तनिक विचारे।
ऐसे होते यार, चले सँग यम के द्वारे।।
पा कर ऐसे मित्र, करे मन नभ को छू लो।
मित्र न ऐसे भूल, भले यह दुनियां भूलो।। 4।।


भूलो मत संसार में, है मतलब की प्रीत।
स्वार्थ साध कर त्याग दे, यही जगत की रीत।।
यही जगत की रीत, कोन है साथ किसी के।
जहाँ मिले ऐश्वर्य, सभी हो साथ उसी के।।
भागेंगे दुख छोड़, देख ना इनको फूलो।
मानो मेरी बात, मित्र को ऐसे भूलो।।5।।


भूलो ना ये मित्रता, भूलो ना ये मित्र।
ले जाते सत्मार्ग में, उत्तम रखे चरित्र।।
उत्तम रखे चरित्र, करे तन मन को निर्मल। 
जो जीवन के मूल्य, सिखाते हमको प्रतिपल।।
होते ये अनमोल, हृदय को इनके छू लो।
दुख पीड़ा सन्ताप, और अब इनको भूलो।।6।।


*मथुरा प्रसाद वर्मा*
ग्राम- कोलिहा, जिला - बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़)

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