Tuesday, 13 May 2025

जख्म जितने मिले थे हरा है अभी

212 212 212 212


जख्म जितने मिले थे हरा है अभी।
दर्द है कम मगर दिल डरा है अभी।

आशुओं को बहा दूँ इजाजत नहीं,
ऐ जमाने नहीं दिल भरा है अभी।

तुम भी मासूम थे हम भी मासूम हैं,
वो भी मासूम था जो मरा है अभी।

दिल जला है मेरा इश्क के नाम पर,
है ये सोना नहीं पर खरा है अभी।

जिनके हाथों ने सदियों पिया है लहू,
छूटा तलवार पर उस्तरा है अभी।

चाहता था कि मैं जी हुजूरी  लिखूं।
उंगलियों ने बगावत करा है अभी।


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