बादल बन कर छा जाते हो।
रिमझिम बरखा बरसाते हो।
प्रिय मिलन की आश जगा कर
बिरहन को तरसाते हो।
अरे सावन! तुम क्यों आते हो।
ला कर शीतल पुरवाई तुम,
डाल डाल महकते हो।
विरहा मन मेें आग लगाकर
तुम क्यों मुझे रुलाते हो।
अरे! सावन तुम क्यों आते हो।
प्रेम सुधा तुम बरसा कर
वसुधा की प्यास मिटाते हो।
और इधर तुम प्रेम बावरी के,
मन की प्यास बढ़ाते हो।
अरे सावन! तुम क्यों आते हो।
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