Wednesday 18 May 2016

याद तुम्हारी आती है।

कोई भवरा गाता है जब,
जब कोई कली शरमाती है।
खिल उठती है कली कोई,
गलियाँ महक जब जाती है।

तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।

चलती है बसन्ती मन्द पवन,
झूम उठता है तन मन।
चिड़ियों की सुन युगल तान
जब साम ढल जाती है।

तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।

मतवाला हो जाता ये गगन।
झूम कर बरसता जब सावन।
घुमड़-घुमड़ कर काली घटा,
जब  धरती पर छा जाती है।

तो सच  प्रिये !
याद तुम्हारी आती है।

ऊँचे-ऊँचे परवत शिखर पर ,
नित बहते है जहां निर्झर।
दूर क्षितिज के छोर पर
जहां नभ् भी झुक जाती है।

तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।

कभी तारों की  बारातों में।
जब देखूं चाँदनी रातों में।
करती चाँद अठखेली
जब बादल में छिप जाती है।

तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।।

दूर कहीं जब गाँवों में।
बजती है पायल पावों में।
आकर सजन की बाँहों में
नववधू कोई शरमाती है।।

तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।।

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