1 कि श्रम के माथ से टपके, जो पानी हो तो ऐसे हो । वतन पर जान दे दे जो, जवानी हो तो ऐसे हो। तिरंगा ओढ़ कर लौटा है जो ये वीर सरहद से हमें है नाज बतलाओ, कहानी हो तो ऐसे हो। 2 कोई पत्थर नहीं ऐसा , न उनपर नाज करता है । गिरा कर खून मिटटी पर ,चमन आबाद करता है। नमन करने जो जाते है, चढ़ा कर शीश आते हैं, माँ के उन लाडलो को आज दुनियां याद करता है। 3 बुलंदी और भी है पर, उन्हीं की बात निराली है, सहादत कर जो माटी चूमते है भाग्यशाली हैं, चमन का हर कली और फुल जिनका कर्ज ढोयेगा, कि अपनी जान देकर जो 4 रुधिर जो लाल बहती है , मैं उनका मान जगाऊँगा। विप्लवी गान गा गा कर सोया स्वाभिमान जगाऊँगा। जगाऊँगा मैं राणा और शिवा के सन्तानो को, नारायण वीर जागेगा, मैं सोनाखान जगाऊँगा। 5 सजाकर अर्थियो में जिनको तिरंगा मान देती है। सहादत को उन वीरों के , माँ भारती सम्मान देती है। कि उन पर नाज करती है हिमालय की शिलाएं भी, चरण को चूम कर जिसके, जवानी जान देती है। 6 हजारो शत्रु आये पर , पर हमको कौन जीता है। कभी हिम्मत के दौलत से न हमारा हाथ रीता है। वंशज है भारत के हम ,धरम पर ...
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.