मित्रो कुछ दिनो पहले मुझे जगन्नाथ जी के दर्शन हेतु पुरी जाने का अवसर मिला
छत्तीसगढिया शायरी 1 . बहुत अभिमान मैं करथौ, छत्तीसगढ के माटी मा । मोर अंतस जुड़ा जाथे, बटकी भर के बसी मा। ये माटी नो हाय महतारी ये, एकर मानतुम करव बइला आन के चरत हे, काबर हमर बारी मा । 2 मै तोरे नाव लेहुँ, तोरे गीत गा के मर जाहूं ।। जे तै इनकार कर देबे, त मै कुछु खा के मर जाहुं ।। अब तो लगथे ये जी जाही संगी तोर मया मा, कहूँ इकरार कर लेबे त मै पगला के मर जाहुं ।। 3 ये कइसे पथरा दिल ले मै ह काबर प्यार कर डारेव ।। जे दिल ल टोर के कईथे का अतियाचार कर डारेव ।। नइ जानिस वो बैरी हा कभू हिरदे के पीरा ला जेकर मया मय जिनगी ला मै अपन ख़्वार कर डारेव।। ...
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