सखी री, जूते उनको मार। जो कर के वादा फिर मुकरे, गिन गिन के दे चार। लोकतंत्र को बना खिलौना, खेले बारम्बार। तन के उजले मन के काले, करते है मनुहार। पद-पैसे पर मोहित होकर, बिक जाते बाजार। लुटे निर्धन के धन को जो, और लाज को नार। सातो पुरखे तर जाएगे, ऐसे कर बौछार। नियम नीति धर झोली में, दफ्तर में व्यापार। रिश्वत के ऐसे पंडो के, सारे भूत उतार। भ्रष्टाचारी जो अधिकारी, बने देश पर भार। नेताओ से गठबंधन कर, बैठे है दरबार। भोली भाली भूखी प्यासी, जनता है लाचार। शासक हो गए अँधे बहरे, कौन सुने चीत्कार।
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.