कवि मथुरा प्रसाद वर्मा
Saturday, 20 July 2024
एक मुक्तक
सफर में बस चुनौती हो, न कोई भी बहाने हो।
गगन के पार जाने तक उड़ाने ही उड़ाने हो।
नए पँखो को मेरे बस नया तुम हौसला देना।
शजर हो जो छितिज के पार मेरे आशियाने हो।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
मुक्तक शिक्षक दिवस
मोर छत्तीसगढ़ी गीत: छत्तीसगढिया शायरी
छत्तीसगढिया शायरी 1 . बहुत अभिमान मैं करथौ, छत्तीसगढ के माटी मा । मोर अंतस जुड़ा जाथे, बटकी भर के बसी मा। ये माटी नो हाय महतारी ये,...
हर जोर जुलम के टक्कर मैं; संघर्ष हमारा नारा है!
अंधियारों ने बहुत सताया नया सबेरा लाना है!! गावं -गावं और घर-घर जाकर दीप नए जलना है !! जब-जब अत्याचार बढे है ;हमने यही पुकारा है ! हर ...
मुक्तक छत्तीसगढ़ी
पहिली जाल बिछाही पाछू, सुग्घर चारा डार दिही। तोरे राग म गाना गाही, मया के मंतर मार दिही। झन परबे लालच मा पंछी,देख शिकारी चाल समझ; फाँदा खे...
No comments:
Post a Comment