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गजल : हम कभी आम थे अब तो आचार हैं।


२१२ २१२ २१२ २१२ 


अपने  हालात पे  यूँ ही लाचार है 
  हम कभी आम थे अब  तो आचार हैं

है ये किसकी नजर आके हमको लगी ,
उम्र भर के लिए हम गिरफ्तार है

भूख हमको लगी रोटियाँ मांग ली,
तब से उनके नजर ने गुनहगार हैं  

जो दवा दे गया दर्दे दिल का हमें ,
सुन रहा इन दिनों वो भी बीमार हैं 

चोर सब मिल गये पहरेदारों से फिर ,
की सियासत जरा अब वो  सरकार है 

थी दुवा मांग ली चंद खुशियाँ मिले,
हाथ उस दिन से दोनों ही बेकार है 


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