Wednesday 26 October 2016

मेरी कविता


ऐ मेरी कविता !

ऐ मेरी कविता  !

मैं सोचता हूँ लिख डालूं ,

तुम पर भी एक कविता ! 
रच डालूं अपने बिखरे कल्पनाओं  को

 रंग डालूंस्वप्निल इन्द्र धनुषी रंगों से,

तेरी चुनरी !
बिठाऊँ शब्दों की डोली में

और उतर लाऊँ इस धरा पर !
किन्तु मन डरता है 

ह्रदय सिहर जाता है ,

तुम्हे अपने घर लाते हुए !

की कहीं तुम टूट न जाओ 

उन सपनों की तरह 

जो बिखर गए टूट कर !


 

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